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________________ ॐॐॐ ॥१३२॥ कहिऊण पिउसरूवं, पुच्छइ निग्गमणकारणं नमुइ । कुमरोऽवि तस्स साहइ, रहमणनिवारणं नयरे ॥१३३॥ अह पिउदिनाएस, सलंपिरो नमुइसंजुओ कुमरो । महया विच्छड्डेण, चलिओ चउरंगवलकलिओ ॥ १३४ ॥ ठाणे ठाणे नरवरभत्तिको वायणाई गिण्हतो । संपत्तो अचिरेणं, हथिणपुरबाहिरुज्जाणे ॥ १३५ ॥ अह नमुई पउनुः सर-निवास विनवड तं तहाभिभवं । तो रमा तत्कालं, जिणरहजत्ता समाढत्ता ॥ १३६ ॥ उग्घोसिया अमारी, कयाउ सम्वत्य हट्टसोहाओ। दिना कुंकुमछडया, विहिया तह मुत्तियच उक्का ॥ १३७ ॥ सुमुहुत्ते संपत्तो, सयदुवारंमि जिण रहो पढमं । उज्जाणाउ कुमरोऽवि, आगो नमइ नियपियरे ॥ १३८ ॥ काऊण कुसलवत्तं, मायापिउसंजुओ महाप8.उमो । संपत्तो रहपासे, करेइ महिमं च तत्थ सयं ॥ १३९ ॥ तत्तो सणिय सणिय, तम्मि पुरे सो रहो परिभमिओ। ईसरसचिवाईहिं, पूइज्जतो पडिगिहंपि ॥ १४० ॥ इय रहजत्तं काउं, रमा पउमुत्तरेण महपउमो । बयगहणवइयर साहिऊण रज्जम्मि अहिसित्तो ॥१४१ ॥ तो गिण्डइ पन्वज्ज, विहिपुच्वं सो महाविभूईए । विण्डकुमारेण सम, सिरिमुचयरिणो पासे ॥ १४२ ॥ अह दोऽवि दुविहसिक्खं, गिण्हंति सुर्य पदंति गुरुपासे । विविहतवचरणरया, जयमि विहरति अममाया ॥ १४३ ॥ सिरिमहपउमनरिंदे, उदग्गपयडप्पयावपरिकलिए । परिपालते रज्ज, आउहसालाइ अन्नदिणे ॥ १४४ ॥ उप्पन अइफारं, दिणयरविबं व वत्तुलायारं । चकं रयणमुदारं, मुतिक्खधारं सहस्सारं ॥ १४५ ॥ सेसाणिषि रयणाई, सपाडिहेराई तत्थ जायाई । अह महपउमनरिंदो कारइ अड़ाहियामहिमं ॥ १४६ ॥ तत्तो पुठव
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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