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प्रकरणम्
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अहिराणहाणकरणपुव्वं तं । तुनारं आहविउ, पेसेइ स पुरिस पोरिसे ॥२९१॥ सो तेहिं समाहूओ. चिंतइ नूर्ण निसाइ पासोरिसो। न मया हणिओ तइया, वियंभियं तस्स ता एवं ॥ २९२ ॥ अह सो निवअत्थाणं, पत्तो सम्माणिऊण भूव. ॥७३॥
इणा । भणिओ भो ! नियमगिणि, मह जच्छसु जेण परिणेमि ॥ २९३ ॥ कइयावि मज्झ भगिणीं, निरिक्खि ताव कोऽविन वलेइ । ना निसि निव एव हि छलेण पत्तो मए सद्धिं ॥२९४॥ इय चिंतिऊण दक्खो, जपइ किं देव ! मग्गए एयं । भइणी न केवलं सा, मह सव्वस पि तुह चेव ॥ २९५ ॥ तत्तो सा तइय चिय, मंडियभगिणी निवेण परिणीया । अइवल्लइ7 य जाया, जीवियदाणोक्यारेण ॥ २९६ ॥ अह मंडियं अमचं, ठविउं कजेस तद्धणं कमसो। आगरिसइ नरनाहो, सरवरनीरं दिणयरु ब्व ॥ २९७॥ अह पुच्छइ तब्भगिणि, राया तुह भाउणो गिहे देवि ! । अज्जवि कित्तिय दवं, ता जंपइ निहियय सा वि ॥ २९८ ॥ तो तं मंडियचोर, निवो विडचित्तु निग्गहावेइ । जं नयनिउणनिवाणं, चिरावि | वीसरइ न मज्जाय ॥ २९९ ॥ तो निकटयरजं, निरपायं धम्मनीइणा सिद्धिं । पालेइ मूलदेवो, जहा मुरिंदो सूरपुरम्मि ॥ ३०० ॥ तत्तो सो कालेणं, दाणाइ गिहत्यधम्ममायरिउ । मरिऊण समाहीए, संपत्तो देवलोगम्मि ॥ ३०१॥ विशुद्धदानातिशयेन चित्र-पस्मिन् भवेऽप्याप्तचरादवाप । सर्वार्थसिद्धिं किक मूलदेवस्तदानधर्म प्रयतेत भव्य! ॥ ३०२॥ इत्युक्तं धर्मभेदाख्य-सप्तमद्वारमध्यगं । विशुद्धदानमाहात्म्य, मूलदेवचरित्रतः॥१॥ इतः पूर्व समुद्दिष्टशीलस्य फलदर्शिनीम् । दृष्टान्तशालिनीमेना, गाथामित्याह मूत्रकृत् ॥ २॥
PERSORRUKURROLORIO
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॥७३॥