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________________ SERIES संपत्तो, सह पंचउलेण सस्थमज्झम्मि । सस्थाहौ वि पयंसइ, कयाणगाई निउत्ताण || २४६ ॥ अह भणड भूमिनाहो, स. स्थाह ! कयाणगाइँ एयाई । जह दसियाइ चिट्ठति. विज्जए कि पि अडियं वा ॥ २४७। सम्मं कहेस जं इह, मज्नं चोरु व्व सुक्कचोरो ति। अयलो भणइ असचं, सामिय ! किं तुज्झ पुरओ वि ॥ २४८ ॥ तो तुह व्व नरिंदो, कारं तस्सद्धदा. णमाह तओ । नियपुरिसे भो सम्म, सोहेह कयाणगाइ पुरो॥२४९ ॥ तो तेहि वसवेहण-चरणपहाराइणा सगाराई । भंडाइ मुणिय भित्तुं च. कडि पट्टसुत्ताई ॥ २५० ॥ त पिक्खिय आह निवो, सचं सत्थाह ! एरिसं तुज्न । दुतिवारपुच्छिओ वि हु, न कहसि ता दभिभो तं रे ! ॥२५१ ॥ तो निवभणियनरेटिं, सो बद्धो तत्थ मारबंधेहिं । तं तह पुरओ काउं, नियअत्थाणे गओ राया ॥ २५२ ॥ छोडाविऊण बधे, सो पणिो किं मम मुणसि नो वा । अयलो आह निवं चिय, जाणामि तुमं न अन्नं ति ॥२५३ ॥ तो देवदत्तगणियं, आहविउ दसियो इमो तीसे । त पिक्खिऊण अयलो वि, विम्हिओ जंपइ किमेवं ।। २५४ ॥ अह भणइ देवदत्ता, जाण तं मलदेवमिह निवई । जो आसि तए भणिओ, रक्खिज्ज ममं पि वसणंमि ॥२५५॥ अवराहे वि महंते, धरिउ मुको सि ज एएण । अवयारुवयाररिणं, तं दिनं तुज्झ इह एवं ॥२५६॥ | अयलो वि मूलदेवं, तं जाणिय तक्खणं खमावेइ । चलणे निवडिऊण, तं अवराह पुरा विहियं ॥ २५७ ॥ भणइ य | उज्जेणीए, संपइ मह देव ! दावसु पवेसं । तो नियदएण सम, तं पेसिय तह करावेइ ॥२५८॥ अनदिणे अत्थाणे, आ. है| सीणं मूलदेवनरनाई। चोरोवद्दबदुहियो, नयरजणो विनवइ एवं ॥ २५९ ॥ देव ! तुमंमि वि नाहे, खिते व जणगि. हेसु खत्ताई । निवइंति तहा नयरं मुसिज्जए सामिरहियन्च ॥२६०॥ तुह आरक्खा जाया, निप्पुननरु ब्व अहलववसाया। प्रकर
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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