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________________ प्रकरण धर्मविधि ॥ ७१॥ SHARECHALLENGLISHRA य, करेइ विनत्तियं एयं ॥ २३० ॥ सो देव ! मूलदेवी, देवयवरलद्धिलद्धमाहप्पो । विनायडमि जाओ, विकमराउ ति है नाम निवो ॥ २३१ ॥ सो भणइ देव ! एयं. मह नेहो उवरि देवदत्ताए । जइ अणुमन्नइ एसा. ता पेसह मज्न पासम्मि ॥ २३२ ॥ जियसत्त वि पर्यपद, का वत्ता देवदत्तगणियाए । सो मूलदेवनिवई, ज मह रज्जस्स वि विभागी ॥ २३३ ॥ इस्थागओन नाओ, तइया सो गुणनिही जमम्हेहिं । त अज्ज वि मह हियए. खुडक्कए नट्रसल्ल व्य ॥ २३४ ॥ अह नर. वइणा भणिया, आहविउ तत्थ देवदत्तावि । भद्दे ! तह अचिरेण वि. एस मणोरहतरू फलिओ ॥ २३५॥ विनायमि नयरे, स मूलदेवो महानिदो जाओ। तुह आणयणनिमित्त. तस्स विसिट्टो इमो पत्तो ॥ २३६ ॥ तो रायाएसेणं, महानि-18 भईइ देवदता सा । पमुइयहियया पत्ता, कमेण विनायडपु रम्मि ॥ २३७ ॥ वित्थडुण पवेसिय, पुरम्मि भणिया निवेण |X सा गणिया । मह रज्ज अज्ज चिय, संजायं संगमे तुज्य ॥ २३८ ॥ तो बाहं अजणतो. अन्नु धम्मअत्थकामेण । सो भुंजड रज्जसिरिं. दीणाणाहाण दाणपरो ॥ २३९ ॥ अपदिणे सो अपलो, पारसकूलाउ तम्मि नयरम्मि । विविडकया. णगपुनो, पत्तो पोउ व्ध जलहीओ ॥२४०॥ अह पुरतीरे रहियो, सत्यं आवासिऊण सिन व । तो पत्तो निववासे, पण- IS मइ काऊण ढोयणियं ॥ २४१ ॥ अयल त्ति दिमत्तं पि, निको मुणड न उण सो निवई । चिंतइ नियो ममेसो, उवयारी अणुवयारी य ॥२४२|| ता एयस्स वि उभयं, कायन्वं संपयं मए कह वि । तो ते भणेइ राया, कत्तो सत्याह ! कि नामो ॥ २४३॥ सो सव्वं पि सरूविय, पंचउलं मर गए निवसयाए । पिक्खिय कयाणगाई, जं सुकं गिन्हा तत्थ ॥२०॥ नो भणियं वाणा, र रमेघ घयं समागवि रसामो । सत्याहो चि यंपइ, पसिऊणं चलह सिग्यं ति ॥ २४५॥ तो निवई 18 खलन
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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