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________________ 1 RECOGICOROSCRACKER ॥ १७५ ॥ अह तम्मि गिहे दीसंत-बाहिरागारसुंदरे कलहं । सोउं परुप्परं महि-लियाण चिंतेउमारद्धो ॥१७॥ नूणं न तह बहुधणं, अत्यि गिहे इत्य कलहकरणाओ । नासेइ दंतकलहेण, जं सिरी इय जणप्पयडं ॥ १७७ ॥ मुढे वि हु थोवधणे, न हविस्सइ कावि मज्झ संपत्ती । न हि बिंदुणा भरिज्जइ, अइगरुरण वि नईनाहो ॥१७८ ॥ इय तं मुत्तूण घर, स वंकचूली महासमिद्धाए । गाणयाइ देवदत्ताइ, मंदिरे झत्ति संपत्तो ॥ १७९॥ तो पाडिऊण खत्तं, कयचरणो चित्तरम्पभित्तिम्मि । वासभवणे पविट्ठो, अच्छिन्नजलंतदीवम्मि ॥ १८० ।। दिद्या य देवदत्ता, सुत्ता सिज्जाइ कुहिएण सम। निदा. मुद्दियनयणा, तो चिंतइ. सो इमं हियए. ॥ १८१॥ अहह कहं एवं विह-धणवित्थारा वि दविणलाभकए । अभिरमइ कुट्टियं पि हु, एसा ही लोहमाहप्पं, ॥१८२॥ अहवा अहं अणज्जो, जो इत्तो वि हु धणं समीहामि । ता पज्जत् इमिणा,पर. मिड्डियगिहमणुसरामि ॥ १८३ ।। ततो समग्गवणिय-प्पहाणसिहिस्स मंदिरे खचं.। पाडेउ सो पविसइ, सगियगई भवणमज्झम्मिः ॥ १८४ ॥ पिच्छइ य तहिं सिर्हि, करसंपुडधरियखडियसंपुडयं । पुत्तेण सम लिक्खग-मणुहमाणं गुरुसरेण ॥१८५।। तत्थः य एगम्मि विसो-पगंमि कहमवि अपुज्जमाणमि । रुट्ठो सिट्ठी जंपइ, पुत्तं रे ! रे ! दुरायार ! ॥ १८६ ॥ अवसरदिहिपहाओ, नीहरसु गिहाउ मज्झ इन्हिपि । अहमित्तियमत्थखयं, पिउणो वि नियस्स न सहेमि ॥ १८७ ॥ एवं पयंपमाण, भालयलारोवियाच्छिदुप्पिर छ । सिढि पिक्खिय वितइ, पल्लिवई विमिओ संता ।।१८।। जो एगवितोपगवि. प्पणासमवलोइऊण पुतंपि । निस्सारिउं समीहइ, सो जइ मुसिउं गिई मुणइ ॥ १८९ ॥ ता नूण मरइ धगवि-प्पणासवसजायहिययसंघट्टो । एवं च किवणपिउणो, न मारणं जुज्जइ इमस्स ॥ १९० ।। ता जामि मंदिरे नर-वरस्स पावेमि 435AIMURLICS
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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