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________________ बमेविधि ॥५४॥ परम् BASICATIOCLUG-5 पालिज्ज सुपुत्ते इव, इयपडिवन्ने गुरू भणइ ।। ९७ ॥ माणिक्ककणयमुत्ता-हला'नारीण मंडणं होइ। पडिवनपालगं पुण, सप्पुरिसाणं अलंकारो ॥ ९८ ॥ छिज्जउ सीसं अह होउ, बंधणं चयउ सबहा लच्छो । पडिवनपालणे सुपुरि-साण जं होइ त होउ ॥१९॥ संतासंतविसेसो, इत्तु चिय वुच्चए इह नराण । अनह समंमि पंचिंदियत्तणे हुन्ज कह भेओ॥१०॥ इय मुणिवइणा भणियं, सम्ममभिग्गहच उकमादाय । काऊणं च पणाम, पल्लिवई पडिगो सगिहं ॥ १०१॥ समगगणसंप.] रिखुडो, मुणिनाहो वि हु जहाभिमयदेसं । इरिआसमिओ जुत्तो, गंतुं सणियं पयट्टेइ ॥ १०२ ॥ पल्लीवइणो वितहिं, बहपावपओयणेसु पउणस्स । नाणाविहवसणसया-उलस्स वचंति दियहाई ॥१०३ ॥ अह अन्नया कयाई, निययसहामंडवे निसन्नस्स । तेण पयंपियमेयं, चिरमिह ववसायरहियस्स ॥ १०४ ॥ बोलंति वासरा मे, ता भो पुरिसा पुरं सुगाम चा । सत्थं वा सुसमिद्धं, सव्वत्थ पलोइङ एह ॥१०५॥ जम्हा तं लुटेमो, गंतूणं मुत्तु सेसकज्जाई । जं केसर्व पि मुच्चइ लच्छी ववसायपरिहीणं ॥ १०६ ।। आन्निऊण एय, तहत्ति पडिसुणिय सासणाउ ति । पुरिसा जहुत्तठाणा, हेरिऊगागया विति। ॥१०७॥ नाह ! निसामेसु तुमं, सत्थो बहुसारवत्थुपडिपुनो। अमुगपहेणं एही, दुन्हं दिवसाण उवरिमि ॥१०८), ता जह वट्टाबंध, काउं अच्छह अणागयं तुम्भे । ता पावेह जहिच्छिय-लच्छीविच्छड्डमचिरेण ॥१०९॥ एवं सुखा कयव य-दिणाण जुग्गं गहाय संबलयं । नियपरियणपरिकिन्नो, पल्लिवई तं गओ ठाणं ॥ ११०॥ सो पुण सत्थो अवसऊण, दोसो तं | पहं विमुतूण मग्गंतरेण लग्गो, पत्तो य समीहियपएसं ॥ १११ ॥ पल्लिवई वि हु तप्पह-पलोयणं कुणइ अर्णा मेसच्छीहिं। नवरं पुवाणीय, संबलयं निट्टियं सव्वं ॥ ११२ ।। ताहे विच्छायमुहो, पीडिज्जंतो छुहाइ वल्लिऊण । पत्तो पल्लिसमोवे, READERSHARE ५४॥
SR No.600381
Book TitleDharm vidhi Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaysinhsuri, Shreeprabhsuri
PublisherHansvijayji Library
Publication Year1924
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size24 MB
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