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सागरण, नागकयं संपई चेव ॥ ३३॥ अह वित्त म दसाहे, रन्ना आणाविऊण सो तत्थ । ठविओ नियरज्जपए, समत्थ. सामर जुत्तेण ॥३३५॥ कालक्कमेण तत्तो, स संपई पयडसासणो जाओ । चित्तं अणारिए विहु, देसे साहेइ भरहदं ॥३३६।। इत्तो चिय विहरंता, सिरिअजसुहत्यिमूरिणो पत्ता । जीवंतसामिपडिमा, वंदणवडियाइ उज्जेणिं ॥ ३३७॥ संपइ रायावि तया, पाडलिपुत्ताउ आगओ तत्थ । पासायस्वरि ठिओ, पुरिलच्छि पिच्छए जाव ॥ ३३८ ॥ ता अज्जमुत्यिकुर, पिक्खइ नयर इ रायमामि । तत्तो चिंतइ राया, कत्मवि पुवंपि दिदृ ति ॥ ३३९ ॥ ईहापोहगवेसण-परो य सो निब
डिओ महीवीढे । आसन्नपरियणेणं, सित्तो चंदणरसाईहिं ॥ ३४० ॥ उवलद्धचेयणो अह, सपुधजाई खणेण संभय। है तो विहियगरुयउर्वयार-सरणविष्फुरियवहुमाणो ॥ ३४१ ।। सामंतमंतिभडकोडि-परिगओ गुरुसमीचमुवगंतुं । पुच्छर
नमिउं भत्तीइ, किंफलो नाम जिणधम्मो ॥ ३४२ ॥ सग्गापवग्गफलओ, जिणधम्मतरु त्ति जंपियं गुरुणा । सामाइयस्स | किंफल-मिइ पुढे भणइ गणहारो ॥ ३४३ ॥ अव्वत्तं सामइयं, रज्जाइफलं ति पञ्चयमि दढे । संजाए तो राया, एमेव & इमं ति मन्त्रेद ॥ ३४४ ॥ पञ्चभिनाणसि सामिय ! कोई अहयं ति जंपइ नरिंदो? । तो विम्हडओ सूरी, सुओगेण इय भणइ
॥ ३४५ ॥ जाणामो सुट्ट इमं, नरिंद ! जह अम्ह तं पुरा आसि । सीसो कोसंबीए, तं सोउं सो समुदसिओ 12 ६ ॥ ३४६ ॥ हिययंमि अमायतं, असंखनाणाइगुणगणं गुरुणो । रोमं च मिसेण वहिं च, पक्खिवतो भणइ एवं ॥ ३४७॥
mech अइसइयनाणविप्फुरिय-तेयनिवियमोहतिमिरोह ! । तिहुयणपयइदिवायर :, गुणसागर ! मुणिवइ ! नमो ते ॥ ३४८ ॥ गुरुजणउवयरियाणं, पञ्चुवयारंभि सुरगणसमेओ । सको वि असक्कु च्चिय, को उण अम्हारिसवराओ ॥ ३४९ ॥ जो
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