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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः
॥४७२ ॥
अनन्तरोद्देशके जीवो निरूपितः, अथ चतुर्थोद्देश केऽपि तमेव भङ्गयन्तरेण निरूपयन्नाह -
जीवे णं भंते! कालाएसेणं किं सपदेसे अपदेसे ?, गोयमा ! नियमा सपदेसे । नेरतिए णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसे अपदेसे ?, गोयमा ! सिय सपदेसे सिय अपदेसे, एवं जाव सिद्धे । जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा अपदेसा ?, गोयमा ! नियमा सपदेसा । नेरहया णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा अपदेसा ?, गोयमा ! सव्वेवि ताव होज्जा सपदेसा १ अहवा सपएसा य अपदेसे य २ अहवा सपदेसा य अपदेसा य ३, एवं जाव धणियकुमारा । पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा अपदेसा ?, गोयमा ! सपदेसावि अपदेसावि, एवं जाव वणप्फइकाइया, सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा || आहारगाणं जीवेगेंदियवज्जो तियभगो अणाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छन्भंगा एवं भाणियव्वा - सपदेसा वा १ अपएसा वा २ अहवा सपदेसे य अप्पदेसे य ३ अहवा सपदेसे य अपदेसा य ४ अहवा सपदेसा य अपदेसे य ५ अहवा सपदेसा य अपदेसा य ६, सिद्धेहिं तियभंगो, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया [भवसिद्धिया] जहा ओहिया, नो भवसिद्धियनोअभवसि - द्विया जीवसिद्धेहिं तियभंगो, सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो, असण्णीहिं एगिंदियवज्जो तियभंगो, नेरइयदेवमणुएहिं छन्भंगो, नोसन्निनो असन्निजीवमणुयसिद्धेहिं तियभंगो, सलेसा जहा ओहिया, कण्हलेस्सा नील| लेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ नवरं जस्स अत्थि एयाओ, तेउलेस्साए जीवादिओ तिथभंगो, नवरं पुढविकाइएसु आउवणष्फतीसु छन्भंगा, पम्हलेस सुक्कलेस्साए जीवादिओहिओ तियभंगो, अलेसीहिं जीवसिद्धेहिं
६ शतके उद्देशः ३
वेदवता
मल्पबहु
त्वादि
सू० २३८
1180211