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________________ RECEBCAREERSECREECHEECHEENDE हय किस प्रकार सहज और अमिटरूपमें स्पर्श कर सकेगा, इसका उन्होंने बहुत ही ध्यान रखा है विधि-निवेधके वाक्य उतने सफल नहीं होते जितने कि उनके साथ विधेयक कार्योंके सुफल और निषेधात्मक कुकृत्योंके दुष्परिणामको बतानेवाले दृष्टान्त | कथाओंका प्रभाव बहुत शीघ्र व स्थायी पड़ता है अतः लोक मानसके पारखी जैन धर्म प्रचारकोंने विना किसी भेदभावके पौराणिक और लौकिक कथा दृष्टान्सोंको अपनाया, उन कथानकोंको किसी धर्मके माहात्म्यके उदाहरणमें गूंथकर अपने उपदेशोंको प्रभावशाली बनाया, इस विषयमें वे बहुत उदार रहे है। खरतर गच्छीव उपाध्याय सूरचन्दने तो कुरानकी कथाको भी अपने 'पदेकविंशति' ग्रन्थमें उद्धृत की हैं। लोककथाएं तो सैंकड़ों उन्होंने अपनें ढ़ांचेमें ढ़ाली है। इनमेंसे कई लोककथाएं तो बहुत ही लोकप्रिय हुई । उनके सम्बन्ध में सैंकड़ों स्वतंत्र रास चोपाई आदि रचे गए। जैन औपदेशिक साहित्यकी परम्परा बहुत पुरानी है। इसका स्वतंत्र सबसे प्राचीन ग्रंथ 'उपदेशमाला' एक विशेष शैलीमें प्राकृत पञ्चबद्ध रचा गया। इसके रचयिता धर्मदासगणि, श्रुति-परंपराके अनुसार तो भगवान महावीरके शिष्य माने जाते हैं पर ऐतिहासिक विचारणा द्वारा विद्वानोंने इनका समय ४-५ वीं शदी तक माना हैं। इस प्रन्य का श्वेताम्बर जैन समाजमें बहुत अधिक प्रचार हुमा । इसकी सैंकड़ों हस्तलिखित प्रतियां समय समय पर लिखी जाती रही और सिद्धर्षि जैसे प्रतिभाशाली अनेकों टीकाकारोंने संस्कृत एवं राजस्थानी भाषामें इस प्रन्धकी टीकाएं बनाइ। जिनमें कह टीकाएं तो १०-१२ हजार श्लोककी विशद है। उनमें अनेकों दृष्टान्त कथाएं गुम्फित्त की गइ । इस ग्रन्थके व्यापक प्रचार और लोकप्रियताका कारण शीलोपदेशमाला और पुष्पमाला आदि औपदेशिक प्रन्योकी रचना समय समय पर विभिल जैन विद्वानों द्वारा हुइ और उन प्रन्योंकाभी बहुत ЕСЕ КЕРЕК
SR No.600375
Book TitlePushpamala Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri, Buddhisagar
PublisherJindattasuri Bhandagar
Publication Year1961
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size27 MB
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