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________________ पुण्यमाला प्रकरणम् । ॥१॥ प्रस्तावना । जैन धर्म वास्तव में लोकधर्म है। जैन तीर्थंकरोंके अनुयायी भ्रमणगणने अधिकाधिक जनताके नैतिक एवं आध्यात्मिक अभ्युत्थानके लिए लोक भाषामें बडी सरल रूपमें दृष्टान्त कथाओं द्वारा सदूधर्मका सन्देश प्रचारित किया। और उनके उपदेशोंने प्राणियोंकी कश्मलताको धो कर अध्यात्मका निर्मल स्रोत जन हृदयों में बहा दिया। उनका प्ररूपित धर्ममार्ग राजा और रंक, बालकसे वृद्ध और स्त्रियों यावत् मनुष्यही नहीं, पशु पक्षियों तकभी आहत हुआ। लाखों करोडों प्राणियों का उद्धार उनकी मंगलमय वाणी से सहजही हो गया। बड़े बड़े भोगी भ्रमरभी तप और कठिन साधना में अप्रसर हुए और राग, द्वेष, मोह, अज्ञान व अन्य कमोंको भस्मिभूत करके भवसिंधुसे पार हो गए । प्राणियों की योग्यता व अभिरुचि भिन्न २ होती है । उसीको लक्ष्यमें रखते हुए अनेक प्रकारके धर्म विधि-विधान प्ररूपित किए गए । सरलसे सरल धर्ममार्ग जैन धर्ममें मिलेगा एवं महादुर्द्धर्श-कठोर धर्ममार्ग भी जैन धर्म जैसा अन्यत्र नहीं मिलेगा। कर्मरूपी रोगके अद्वितीय चिकित्सक तीर्थंकरों एवं उनके अनुयायी आचार्यों, एवं मुनियोंका जीवनही बड़ा आदर्श, प्रेरणादायक, प्रभावोत्पादक और अनुकरणीय रहा है और उनके अनुभूति प्रधान, उपदेशने प्रत्येक कर्म रोगके निवारण के लिए अमोघ एवं राम बाण औषधिका स्थान लिया है । जैन मुनियों का औपदेशिक साहित्य बहूतही हृदयस्पर्शी भावोत्पादक और विपुल है। अपने धार्मिक संदेशको जन 81 प्रस्तावना । ॥ १ ॥
SR No.600375
Book TitlePushpamala Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri, Buddhisagar
PublisherJindattasuri Bhandagar
Publication Year1961
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size27 MB
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