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________________ ॥ ६ ॥&ा.. आ ग्रंथ प्रथम संवत १९६६ मां भावनगर श्री आत्मानंद जैन सभा तरफथी मूळ ने अनुवाद साथे छपायेल छे. तेनी शुद्धि अने भाषांतर वडोदरानिवासी श्रावक मगनलाल चुनीलाल वैदे करेल छे. उपोद्घात प्रवर्तक महाराज श्री कांतिविजयजीए लखेलो छे. भाषांतर पण ते बुकमां पाछळ आपेलुं छे. आ ग्रंथ टीकायुक्त होय तो वधारे उपकारक थाय एवो विचार आवतां टीकानी शोध करतां आ टीकायुक्त ग्रंथनी प्रति पंन्यासजी मानविजयजीने वडोदरामां मळी आवी. महाराजश्रीए ए प्रत भंडारमाथी कढावीने वडोदराना रहीश मास्तर सुंदरलाल चुनीलालनी मारफत लहीया पासे ते लखावी, पण आवा ग्रंथनो विशेष प्रचार थाय तो सविशेष उपकार थाय ते आशयथी ते हस्तलिखित प्रत परथी तेमणे प्रेसकोपी कराववा- विचार्यु अने ते काम “जैन " ओफिसमां काम करतां शा. नरोत्तमदास रुगनाथने सोंपवामां आव्यु जे तेमणे अत्यंत काळजीथी पार पाड्यु. हस्तलिखित प्रतमा कोइ स्थळे स्खलना रही गइ होय तो तेनी शुद्धि करवा माटे बीजी प्रतनी अगत्यता जणाइ पण पाटण तेमज अमदावादना कोइ ज्ञान-भंडारमाथी आ ग्रंथनी बीजी नकल उपलब्ध थई शकी नथी. आभार___ भावनगरनिवासी वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध श्री कुंवरजी आणंदजीए आ ग्रंथना प्रुफो लागणीपूर्वक जोइ आप्या छे ते माटे तेमनो आभारी छु. पूज्य पंन्यासजी महाराजे अनहद प्रयास सेवी आ ग्रंथनो उद्धार को छे ते माटे तेमना ऋण- माप करवं मुश्केल छे. आ उपरांत सौथी विशेष उपकार तो जामनगर, राधणपुर, खीवानदी (मारवाड़)ना आर्थिक सहायक सद्गृहस्थोनो मानवानो रहे छे. आपुस्तकना मुद्रणकार्यमां महोदय प्रेसना मालीक शा. गुलाबचंद लल्लुभाइए पण चीवट अने खंतपूर्वक सहकार आप्यो छे. निवेदक-शेठ भोगीलाल साकलचंद
SR No.600374
Book TitleJain Tattva Saragranth Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani, Manvijay Gani
PublisherVardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1941
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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