SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरीक्षा प्रकाशकीयं ॥ १ ॥ || प्रकाशकीयं निवेदनम् ॥ अर्द्ध नमः । ॐ स्मोपास्यचरण भगवान् महोपाध्यायजी श्रीमान् यशोविजयनीगणि महाराजना ग्रन्थोने अंगे कांड़पण निवेदन कर ते उच्चकोटिजात्य सुवर्णने गिलेट लगाववा जेवुं या सूर्यप्रकाशने आंगलीथी बताववा जेवुं छे. भगवान् उपाध्यायजीना जीवनतान्त माटे जे जे उल्लेखो करवा ते पण प्रायः चर्चित चर्वण या पिष्टपेषण तुल्य छे. तेओश्रीना निकटकालमां बनेल सुजसवेली भास के जे अमोए उपाध्यायजी भगवंते रचेला तत्वपूर्ण मोटा स्तवनादि तथा द्रव्यगुणपर्याय रास विगेरेनो संग्रह बहार पाड्यो छे तेना निवेदनान्तर्गत प्रकाशित कर्यो के तेथी तेओश्रीना जीवनोदन्तनो झांखो अने स्वल्प पण सत्यस्वरूप प्रकाश पडे छे. भगवंत उपाध्यायजीना वचनो एटले " प्रमाण-नय- सप्तभंगी-सकलादेश-विकलादेश-निक्षेप विगेरेना निष्कर्षरूप स्वरूप प्रदर्शन साथै पदार्थोना ऐदम्पर्य विचारप्रदर्शक दीवाओ, श्रीजिनेश्वरदेव प्रत्येनो अविहड भक्तिरस प्रकटावनार पीयूषना झराओ, बोधिबीजना अंकूरो खीलवनार पुष्करावर्त मेघ, सुवर्णमुद्रामुद्रित टंकशाली अबाधित सिद्धान्तवाक्यो, सम्यग्दर्शन निर्मलता अने दृढता कराववा साथै प्रभाव प्रशासन उपरना असीम प्रेमभाव अने बहुमानने उत्तेजित करनार परमसाधनो, पदे पदे न्यायकोटिनी उच्च कक्षानुं निष्कर्ष, प्रावचनिक-तार्किक - कार्मग्रन्थिक-सैद्धान्तिक आदि प्रभावक महापुरुषोना विचारोनो नयभेदे समन्वय करावनार परमपाज, सिद्धान्त अने शास्त्रोना साक्षिरूप संवाद पाठोनुं मोढुं निधान, योगसाधनाना परमस्वरूप यावत् धर्ममेघ समाधि परमममरस भाव अने प्रभु सा समापत्तिरूप एकाग्रता प्राप्त करवानी सरणि, श्रुतकेवलि भगवंतोना अगाध -अमाप - गंभीर श्रुत समुद्रनुं अवगाहन करवाने महानाव आत्माने प्रभुधर्मथी रसवेधित साम्रना सुवर्ण भावनी जेम अगर चोळमजीठ रंगथी रंजित वखनी जेम तद्रूप बनावनार निर्मल रस निवेदनम् ॥ १ ॥
SR No.600371
Book TitleDharm Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1942
Total Pages304
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy