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________________ ॥ श्रीआचाराङ्ग प्रदीपिका ॥ इनके धर्मानुशासन में सं. १५६६ में उपासकदशांग, सं. १५७६ में पंचमांग भगवतीसूत्र आदि प्रतियां विशेष रुप से लिखी गई। इनका स्वर्गवास सं. १५८२ में पाटण मे हुआ। -मुनितिमा विमित शत्रुजय वैभव ५.४५. श्री जिनहंससूरि : श्री जिनसमुद्रसूरि के पट्ट पर जिनहंससूरि हुए, इनका जन्म संवत १५२४, दीक्षा सं. १५३५ में और आचार्य पद १५५६ में शांतिसागर द्वारा हुआ, सं. १५८२ में जिनहंससूरि पाटण में स्वर्गवासी हुए, इनके समयमें सं. १५६३ में शांतिसागर द्वारा आचार्यांय गच्छकी उत्पत्ति हुई। - श्री पट्टावलीपरागसंग्रह । ले. पं. कल्याण विजयगणि। (४) जिनहंससूरि : आप सेत्रावा निवासी चोपड़ा मेघराज के पुत्र और श्री जिनसमुद्रसूरिजी की बहिन कमलादेवी की कोख से उत्पन्न हुए थे । सं. १५२४ में इनका जन्म हुआ था और धनराज इनका नाम था । सं. १५३५ में विक्रमपुर में दीक्षित हुए, दीक्षा नाम धर्मरंग था । सं. १५५५ अहमदाबाद में आपकी आचार्य पद पर स्थापना हुई। जिसका उत्सव बीकानेर में सं. १५५६ जेष्ठ सुदि ९ को ०
SR No.600361
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJinhansasuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1996
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size15 MB
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