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________________ ॥ श्रीआचाराङ्ग प्रदीपिका ॥ પ્રદીપિકાકાર શ્રી જિનહિંસસૂરિ: ખરતરગચ્છીય આચાર્યશ્રી જિનહંસસૂરિ મહારાજના જીવન અંગે વર્તમાનમાં જેટલી માહિતી પ્રાપ્ત થાય છે તે અને તે તે પુસ્તકોમાંથી સાભાર ઉદ્ભૂત કરી અક્ષરશ: અત્રે આપીએ છીએ. (१) १८ जिनहंससूरि :- समय १५२४ से १५८२ । खरतरगच्छागुरु जिनसमुद्रसूरी । जन्म १५२४ । सेत्रावा निवासी चोपडा गोत्रीय मेघराज और कमलादे के पुत्र । दिक्षा १५३५ बीकानेर । आचार्य पद १५५५ । बादशाह को धौलपुर में चमत्कार दिखाकर ५०० कैदियों को छुडवाया। स्वर्गवास १५८२ । आचारांगसूत्र दीपिका (१५७२ बीकानेर) इनकी प्रमुख रचना है। राजस्थानका जैन साहित्य - Yस्त मंतगत भली. विनयसाविजित 'संस्कृत साहित्य मेवं साहित्य' ५ ५२थी ५.६७. (५२) जिनहंससूरि - (लेखांक-२७२) खरतरगच्चछीय परिचय संख्या ४६ वाले आचार्य (जिनसमुद्रसूरि) के पट्टधर जिनहंससूरि संसारी पक्ष से उनके भानजे थे । इनका जन्म सं. १५२४ सेत्रावा में हुआ था। चोपडागोत्रीय मेघराज पिता और कमलादेवी माता थी। ॥ १४ ॥
SR No.600361
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJinhansasuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1996
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size15 MB
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