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________________ भाषान्तरम् पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान ॥६७॥ दिकने धारण करवा ॥१२॥ इत्यादिक प्रकारना उत्तमोत्तम धार्मिक कर्सष्योने करवावडे करी श्री पर्यषण महापर्व- आराधन करी भव्यजीवोए पोतानो मानवजन्म सफळ करवो. ॥ ग्रंथकार-प्रशस्तिः॥ " श्रीमत्तपागच्छनभोनभोमणिः, शालीलघुयः सूरिसोममोददः। तत्पदृभानोदयसोमसूरिणा, वह्न्यांकहस्तिशशिवर्षस्वीकृतम् ॥१॥" भावार्थ:-श्रीमान तपागच्छरूपी गगनमंडळने विषे सूर्य समान लघुपोशालना पूज्य श्री सोमहर्ष (आणंदसोम) सुरीश्वरजी थया.तेनी पाटे थएला श्री उदयसोमसूरि महाराजे संवत् १८९३ ना वर्षे अष्टाहिका व्याख्यान नामना | ग्रंथनी रचना करेली छे. ते यावच्चंद्रदिवाकरौ पर्यंत जयवंत वर्ती वाचक तथा श्रोता (श्रवण करनारा) भव्यजीवोने महाकल्याणना हेतुभूत थाओ. ॥ इति श्री पर्युषण-पर्व माहात्म्यं संपूर्णम् ॥
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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