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________________ भाषान्तरम् भंगने कयु नहि. हे राजन् ! देवताओना स्वामी इंद्रमहाराज समाने विषे बेसी देवताओनी पासे तमारा अतुल पर्युषणा पराक्रमनी प्रशंसा करता हता, ते प्रशंसा अमो सहन नहि करी शकवाथी तमोने चलायमान करवानो निश्चय करी ष्टान्हिका अहीं आवी क्षोभ पमाडवा प्रयत्न कर्यो; परंतु तमोने क्षोभ पमाडवाने कोइ पण समर्थमान नथी. हे जगत्पभुव्याख्यान कुलावतंस ! हे ऋषभदेवस्वामीना कुळने विषे मुकुट समान ! हे वीर ! रत्नगर्भा वसुधरा ! आ यथार्थ नामने ॥४३॥ धारण करनारी पृथ्वी तमारावडे करीने ज रत्नगर्भा कहेवाय छे. कडुं छे के “ नागो भातिमदेन कंजलरुहैः पूर्णेदुना शर्वरी, शीलेन प्रमदा जवेन तुरगो नित्योत्सवैमंदिरं। । वाणी व्याकरणेन हंसमिथुनैनद्यः सभा पंडितैः, सत्पुत्रेण कुलं त्वया वसुमति लोकत्रयं धार्मिकैः।१।। । भावार्थ:-जेम मदवडे करी हस्ति शोभे छे तथा जेम कमळोवडे करी सरोवर शोभे छे तथा जेम पूर्णिमाना चंद्रवडे करी रात्रि शोभे छे तथा जेम शियळवडे करी स्त्री शोभे छे तथा जेम वेगवडे करी घोडो शोभे छे तथा जेम निरंतर उत्सववडे करी मंदिर शोमे छे तथा जेम व्याकरणवडे वाणी शोभे छे तथा जेम हंसना मिथुन (जोडला) वडे करी नदी शोमे छे तथा जेम पंडित वडे सभा शोभे छे, तथा जेम सत्पुत्रवडे करी कुळ शोभे छे, तथा जेम धर्मनिष्ठ माणसवोडे प्रण लोक शोभे छे, तेम हे महानुभाव ! हे वीर! तमारावडे करी आ पृथ्वी शोभे छे. एवी रीते जेवामां स्तुति करे छे तेवामा श्रीमान् इंद्रमहाराज त्यां पधार्या, अने जय जय शब्दना उच्चारपूर्वक सूर्ययशाराजाना उपर पुष्पनी दृष्टि करी. त्यारवाद प्रतिज्ञाभ्रष्ट थएली उर्वशीना सन्मुख उपहासपूर्वक जोवाची लज्जाने ४३॥
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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