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________________ भाषान्तरम् पर्युषणाष्टाद्विका व्याख्यान ॥४०॥ तेज व्रत छे, कारण के जे पापिष्ट माणसोए पोतानां अंगीकार करेलां वचनोनो भंग करेलो छे ते अशुचिमय पापिष्ट माणसोना भारवडे करो आ पृथ्वी अत्यंत खेद पामे छे. हे नाथ! तमाराथी आ लगार मात्र कार्य सिद्ध यतुं नथी तो राज्यादिक आपवानी तमारी बुद्धि केम यशे? अरे रे ! तमारा माटे में महारा पिता विद्या| धरना ऐश्वर्यनो त्याग करेल छे तो जेवा तेवा तमारा राज्यने शुं करुं? हे स्वामिन् ! जो तमे पर्वना भंगने करता नथी तो महारा पासे श्री युगादि जिनेश्वरना प्रासादनो नाश करो. उर्वशीना एवा वाक्यने श्रवण करवामात्रथीज mil राजा वजाहत जेम मूर्छा पाम्यो अने चैतन्य रहित थइ भूमिपर पज्यो. ते मंत्रीना आदेशने विषे तत्पर यएला | अने आकुळव्याकुळ भावने पामेला लोकोए पाणीना सिंचन करवाथी तथा पवनना नाखवावडे करी राजा चैतन्य पाम्यो. ते समये पोताना पासे उभी रहेल खोने देखी क्रोष करी राजा बोल्यो-हे अधमे ! आ तारो आचार तथा आ तारी वाणी महारा पासे तहारा अधमपणाने सूचवे छे, कारण के उद्गारना पेठे आहार होय छे. तुं । विद्याधरनी पुत्री नथी किंतु चांडालनी पुत्री देखाय छे. में मणिना भ्रमवडे करी फोगट काचना खंडने विषे आदर करेलो के. वळी पण शास्त्रकारमहाराजाए शास्त्रने विपे स्त्रीओने नीच कहेली छे ते बराबर छे, जे माटे कयुं छे के: यदुक्तम्" वाचाला कलहप्रिया कुटिलिनी क्रोधान्विता निर्दया, मूर्खा मर्मविभाषिणी च कृपणी माया यथा डिंभकाः ।
SR No.600358
Book TitleParyushanasthahnika Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManivijay
PublisherHirachand Hargovan Kapadia
Publication Year
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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