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श्रीउत्तरा- व्याख्या-स्पष्टम् । नवरम्- 'अन्तरं' विवक्षितक्षेत्राऽवस्थितेः प्रच्युतानां पुनस्तत्प्राप्तेर्व्यवधानम् ॥१४॥ एतान्येव ध्ययनसूत्रे भावतोऽभिधातुमाहश्रीनेमिच- वण्णओ गंधओ चेव.रसओफासओतहा। संठाणओ यविणेओ. परिणामो तेसि पंचहा ॥१०॥ न्द्रीया
वण्णओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया, हालिद्दा सुकिला तहा १६ सुखबोधा
|गंधओ परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया। सुभिगंधपरिणामा, दुन्भिगंधा तहेव य ॥१७॥ ख्या लघु
रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । तित्त कडुय कसाया, अंबिला महुरा तहा ॥१८॥ वृत्तिः ।
फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउया चेव, गुरुया लहुया तहा ॥१९॥ ॥३७७॥la सीया उण्हाय निद्धा य, तहा लुक्खाय आहिया। इति फासपरिणया, एए पुग्गला समुदाहिया २०
संठाणपरिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। परिमंडला य वट्टा य, तैसा चउरंसमायया ॥२१॥ वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओचेव, भइए संठाणओ वि य ॥२२॥ वन्नओ जे भवे नीले, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव. भडए संठाणओ वि य ॥२३॥ वन्नओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२४॥ वन्नओ पीअए जे उ, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२५॥ वन्नओ सुकिले जे उ, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२६॥ |गंधओ जे भवे सुब्भी, भइए से उ वन्नओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२७॥ |गंधओ जे भवे दुम्भी, भइए से उ वन्नओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य ॥२८॥
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पत्रिंशं जीवाजीवविभक्तिनामकमध्ययनम् । भावतो रूप्यजीवप्ररूपणा ।
॥३७७॥