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एसा, सरस्सई किन्नु पञ्चक्खा ॥ ३० ॥ अहवा पुच्छामि इमं, कजेणं केण चिट्ठई एत्थ ? । इय चिंतिऊण हियए, SIकुमरो पयर्ड इमं भणइ ॥ ३१ ॥ का सि तुमं वरबाले ! ?, ईसिं पयडेसि कीस अप्पाणं ? । विजागहणासत्तं, कीस
ममं सुयणु! खोभेसि? ॥३२॥ सुणिउं कुमारवयणं, वियसियदिट्ठीए वियसियमुहीए । पयडंतदंतकिरणा-ऽऽवलीए तीए इमं भणियं ॥ ३३ ॥ नयरपहाणस्स अहं, धूया सेहिस्स बंधुदत्तस्स । णामेण मयणमंजरी, इह चेव विवाहिया णयरे ॥ ३४ ॥ जद्दिवसाओ दिट्ठो, सुंदर! तं कुसुमचावसारिच्छो । तद्दियहाओ मज्झं, असुहतरू वडिओ हियए ॥ ३५ ॥ निद्दा वि हु नट्ठा लो यणाण देहम्मि वडिओ दाहो । असणं पि नेय रुच्चइ, गुरुवियणा उत्तमंगम्मि ॥ ३६ ॥
यतः–ताव चिय होइ सुहं, जाव न कीरइ पिओ जणो को वि । पियसंगो जेण कओ, दुक्खाण समप्पिओ अप्पा | Kel॥ ३७ ॥ पेरिज्जतो वि पुरा, कएहि कम्मेहि केहि वि वराओ । सुहमिच्छंतो दुल्लह-जणाणुराए जणो पडइ ॥ ३८ ॥
|ता जइ मए समाणं, संगं ण य कुणसि तरुणिमणहरण ! । होही तुह तियवज्झा, फुडं जओ णत्थि मे जीयं ॥ ३९ ॥ | ॥ ३९ ॥ सो निसुणिऊण वयणं, तीए बालाए चिंतए हियए । मरइ फुडं चिय एसा, मयणमहाजलणदडूंगा ॥ ४०॥ निसुणिज्जइ पयडमिणं, भारह-रामायणेसु सत्थेसु । जह दस कामावत्था, होति फुडं कामुयजणाणं ॥४१॥ अवि य| पढमा जणेइ चिंतं, बीयाए महइ संगमसुहं ति । दीहुण्हा नीसासा, हवंति तइयाए वत्थाए ॥ ४२ ॥ जरयं जणइ चउत्थी, पंचमवत्थाए डज्झए अंगं । न य भोयणं च रुचाइ, छट्ठावत्थाए कामिस्स ॥ ४३ ॥ सत्तमियाए मुच्छा, अट्ठमवत्थाए होइ उम्माओ । पाणाण य संदेहो, नवमावत्थाए पत्तस्स ॥ ४४ ॥ दसमावत्थाए गओ, कामी जीवेण मुच्चए नूणं । ता एसा मह विरहे, पाणाण वि संसयं काही ॥ ४५ ।। परिभाविऊण हियए, रायकुमारेण भावकुसलेणं । भणिया सिणेहसारं, सा बाला महुरवयणेणं ॥४६॥ सुंदरि! सुंदररन्नो, सुंदरचरियस्स विउलकि
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