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भेट आपवानुं मान ___ अपर्वने दिवसे पर्व करवाना विचार वाळाओने सन्मार्ग समजावनारुं नकर शास्त्र प्रमाणोवाळु 'श्री पर्वतिथिप्रकाश' नामनु पुस्तक आ संस्थाए हजु हमणांज भेट आप्यु छे. पटलामांज श्री कर्मप्रकृति अने पंचसंग्रह जेवां २०० फरमानां गंजावर शास्त्र रत्नो सुशोभित पाटलीओ साथे भेट आपी सहायकोनी पुण्य इच्छाने सफल करवानु तेमज खरी साहित्य सेवा बजाववानुं महान् मान मेळववा पण आ ज संस्था भाग्यशाळी थाय छे. सहायथी किंवा खर्चथी प्रगट कराता कामना के बीन कामना साहित्यनी पण भारे फिमतो उपजाववानी आजे ज्यां फरियाद थाय छे त्यां शास्त्रीय विषयना परम उपयोगी १२५ अने ७२ फरमाना स्पेश्यल लायन लेजरपेपर उपर सारा संशोधन करायेला महान् ग्रन्थरत्नो आ उगती संस्था मेट आपी शके छे, ए गौरवनो विषय तो छ ज, तदुपरांत | शान सेवानी भावनामा रमता सज्जनोने अनुकरणीय पण छे. कीमत छपाव्यानुं कारण
'ग्रन्थोमा जो पुरती सहाय आधी गइ होय तो कीमतो उपजाववानी खटपटमां नहि पडवु जोइप' ए विचारना अमे पोषक छीप. श्री पंचसंग्रहमा पुरती सहाय आवी न हती अने पंचसंग्रहनो प्रथम भाग पण बे टीकाओ साथे बहार पाडवानी जरुर जणाती हती. ते बधा खर्चने पहोंची बळवा सारु कीमतो मुकरर करी हती. पण जता दिवसोमा खुटता खर्चनी व्यवस्था थइ गह. जेथी | पंचसंग्रहनो प्रथम भाग झान सेवा इच्छनार सखी गृहस्थो उपर मुल्तवी राखी आ ग्रन्थोने मेट आपवार्नु जाहेर कयु छे. अमारी आशा
जैन समाजमां माननी अभिरुची वधती जाय छ, शानना फेलाषा पाछळ धर्मी आत्माओ नाणां पण खुब खर्चे छे. पने सफल
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