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कर्मप्रकृतिः
प्रकाशकर्नु निवेदन
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| 'अष्टम' शब्दनो विचार
दीक्षानी जघन्य वय विषे बीजो मत जणावतां श्री निशीथचूर्णिकार महाराजे "गर्भाष्टम" शब्दनो प्रयोग कर्यों छे. पना अर्थमां | | मुंझवण न थाय ते माटे तरतज श्री चूर्णिकार महाराजे "जन्माष्टम" वाक्यथी 'गर्भथी आठ पुरां ग्रहण करवां' पवो पनो अर्थ जणाव्यो
छे. ए देखीतुं छे के ज्यारे गर्भथी आठ वर्ष पुरां थयां होय त्यारे जन्मथी सातमुंज चालतुं होय. आ वस्तुने समज्या विना जेओ 'जन्माष्टम'ने पण एक जुदो मत कहे छे, अने बेने बदले त्रण मतो गोठवी आठथी नीचेनी वयवाळाने पण दीक्षा शास्त्रसम्मत होवार्नु | जणावे छे, तेओन कहे, असत्य है. अहिं भाण्डारकरनी संस्कृत बीजी चोपडी विगेरेना आधारे अएम शब्दथी आठमानी शरुआत ज लेवी जोइए' एवो भ्रम पण सेवी शकाय तेवो नथी, केमके-श्री ज्ञाताजी आदि सूत्रोमां श्री मेघकुमार आदिने कलाग्रहणनी वय जणावतां "सातिरेगट्ठवासजातगं चेव गब्भट्ठगे वासे"-भावार्थ-'मेघकुमार कंइक अधिक आठ वर्षनो थतां ज गर्भाष्टम वर्षमां'-कहेलुं छे. आ बतावी आपे छे के सूत्रोप गर्भाष्टम काल कहक अधिक आठ वर्षनो ग्रहण करेलो छे. आभार दर्शन
आ महान ग्रन्थोनुं संपादन तथा संशोधन काय पू. पा, आचार्य महाराज श्री विजयप्रेमसूरीश्वरे तथा तेमना शिष्यरत्न पू. पा. उपाध्यायजी महाराज श्री जंबूविजयजी गणिवरे करेलु छे. ते माटेप बन्ने महात्माओनो प्रथम उपकार मानवो जोइए. बीजो उपकार हस्तलिखित प्रतिओ अमोने छाणी तथा खंभातना जे भंडारोमाथी मली हती तेना संग्राहक तथा कार्यवाहक महाशयोनो अमे मानीए छीये. त्रीजो उपकार आ महा मूल्यवान ग्रन्थोना प्रकाशनमा पुरती द्रव्य सहाय करीने अमूल्य शाननो लाभ अपावनारा पुण्यशाळीओनो पण स्वीकारीये छीये. चोथो आभार अमारा मुद्रको श्री भगवानदासभाई तथा हीराचंदभाई के जेओए द्रव्य लोभ विना प्रामाणिक पणे अंगत लागणीथी काम कयु छे तेओनो अमारे दविवो जोइप.
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