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________________ कर्मप्रकृतिः प्रकाशकर्नु निवेदन ॥४॥ बनाववा प्रत्ये प्रत्येक धर्मप्रेमीनें लक्ष्य घडावू जाइए. जो पुस्तको पमने पम मंडारमा भरातां जाय, एक नकलनी जरूरने बदले अनेक नकलो एकडी कराय, महत्व विनाना साहित्यमां नाणां रोकी फेलावो कराय, तो तेथी अनुक्रमे अभ्यास रुंघाय छे. सर्वतः प्रचार था शकतो नथी, अने महत्व- साहित्य प्रकाशमां आवी शकतुं नथी. पुस्तक कीमतर्नु होय के मेटर्नु होय परंतु अमने आशा छे के | समाज पुस्तको लइने तेनो उपयोग करतां शीखशे, संतोष अने उदारता पूर्वक पोता उपरांत अन्यत्र पण पुस्तकोना प्रचारथी लाभ थवा देशे, तथा महत्वना साहित्योद्धार माटे शक्ति अखण्डित राखशे. जैन समाजना करकमलमा आजे कर्म विषयना बे उत्तमोत्तम प्रन्थो तेनी तमाम सामग्री साथे सादर अर्पण करवामां आवे छे, तेनाथी पोतानी क्रियारुची विशेष खीलषीने संसार रोगनां मूल भूत | कों वधतां अटके तेम करवू, अने मुक्ति निकट आवे तेम थवा देवु प सौने पोताना हाथनी वात छे. निवेदक नम्र सेवक खुवचंद पानाचंद, ODIODOOS ॥४॥
SR No.600347
Book TitleKarm Prakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Chirantanacharya, Malaygirisuri, Yashovijay Gani
PublisherJin Gun Aradhak Trust
Publication Year2016
Total Pages1490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size37 MB
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