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________________ निवेदन उपर करावी गया छीए. तेनुं श्लोकप्रमाण १८८५० छे. कर्मप्रकृतिः | विषयदर्शन प्रकाशक॥२॥ श्री कर्मप्रकृति मूल, चूणि अने टीकामोर्नु विषय दर्शन पाछल विद्वान प्रस्तावक पूज्यश्रीए पोतानी संस्कृत प्रस्तावनामा कराIll बेलुं छे. श्री पंचसंग्रहमां पण तेज प्रमाणे श्री बंधनकरण, संक्रमकरण आदि आठ करणो, उदय अने सत्ता प्रमुख विषयोनो बोध आपेलो छे पाछळनी संस्कृत प्रस्तावना वांची जोवाथी सुक्ष वांचकोने प पण समजाइ जशे के- . | आयोजीका (१) आयोजीकाकरण आत्मानी मोक्ष सन्मुखता माटे करवामां आवे छे. ते सघळा केवलो महाराजो अवश्यमेव करेज छे. विषम कर्मोने सरखां करवा माटे जे करण कराय छे तेनु नाम समुद्घात छे. ते आयोजीकाथी जुदुं छे. आयोजीकाकरण सेवीने जे केवली महात्माओनां नाम गोत्रादि कर्मों आयुष्यथी विषमस्थितिवाळां होय तेओ ज ते समुद्घात करे छे. श्री पन्नवणाजीमां पण एज प्रमाणे स्फुट करवामां आव्यु छे. जेओ आयोजीकाकरणने समुद्घातनी माफक वर्णवे छे तेओर्नु कहेवू सत्य नथी. ७. गुणश्रेणी (२) कर्मप्रकृतिनी माफक श्री पंचसंग्रहमां पण उदयाधिकारे गाथा १०७-१०८मां श्री समकित आदि ११ गुणश्रेणीओनुं स्वरूप कहां | छे. ते जाणनाराओने ए दीवा जेवू स्पष्ट छे के प्रथम समकित प्राप्त करनारो अनादि मिथ्यादृष्टि होय छे, ते उपशम अथवा सैद्धान्तिक ॥२॥ मते क्षायोपशमिक सम्यक्त्व ज प्राप्त करे छे. परंतु श्रेणिर्नु औपशमिक के क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करतो नथो. पवा प्रथम समकितीनी निर्जरा बेशक मिथ्यादृष्टि करतां असंख्यगुणी छे, किन्तु सर्वविरति साधु करतां असंख्यगुण तल मात्र नथी, केमके समकित आदि || Tata DASS
SR No.600347
Book TitleKarm Prakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Chirantanacharya, Malaygirisuri, Yashovijay Gani
PublisherJin Gun Aradhak Trust
Publication Year2016
Total Pages1490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size37 MB
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