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________________ ADRIODDEDAL प्रगट था हती, अत्यारे ते पण दुष्पाप्य छे. अभ्यासीओना लाभार्थे उपरोक्त टीका नीचे आ टीका पण अक्षरशः प्रगट करवामां भावी छे. सरखा पाठोने कापी नाखवानुं दुःसाहस आ पुस्तकमा मुद्दले करवामां आव्यु नथी. श्री पंचसंग्रह पंचसंग्रहना मूलकर्ता पू. श्री चंद्रर्षिमहत्तर छे. तेओधी पू. श्री पार्श्वर्षि गुरुना शिष्य होय तेम ते ग्रन्थनी छेवटे आपेली | प्रशस्ति यांची जोतां समजाय छे. तेभोथीए आ ग्रन्थनी प्राकृत ९९१ गाथा रचेली छे. अने तेने पांच द्वारमा विभक्त कर्यों छे, जेनां नाम अनुक्रमे (१) योग उपयोग मार्गणा (२) बंधक (३) बन्धव्य (४) बन्धहेतु अने (५) बन्धविधि छे. आ साथे प्रगट थतो पंच| संग्रह एमांधी पांचमाद्वाररुप छे, जे कर्मप्रकृति विभागात्मक छे. श्री पंचसंग्रहनी टीका १ श्री पंचसंग्रहनी आयटीका संस्कृत भाषामा खुद श्री मूलकार महाराजनी बनावेली छे. तेनुं श्लोक प्रमाण ९००० नुं छे. संक्षेपमां| पण मूलोक्त वस्तुनो स्फोट तेओश्रीए अच्छो कर्यों छे. कर्मविषयमां तेओश्रीए बनावेला बीजा ग्रन्थो श्री सप्ततिका गाथा ७५ तेमज तेनी वृत्ति २३०० श्लोक प्रमाण मौजुद छे. आ टीका साथेनो संपूर्ण प्रन्थ श्री आगमोदय समिति तरफथी प्रगट थयेलो छे. अहींथी प्रगट थनारा पुस्तका आ टीका साथे श्रीमलयगिरि महाराजनी टोका सामेल करवामां आवी छे, जे श्रीयुत हीरालाल हंसराज तर फथी पूर्वे प्रगट थवा छतां अत्यारे दुर्लभ्य छे. श्री पंचसंग्रहनी टीका २ श्री पंचसंग्रहनी बीजी टीका संस्कृत भाषामा पू. श्रीआचार्यमलयगिरि महाराजे बनावेली छे, जे महापुरुषनो किंचित परिचय अमे HDSGAROOODS
SR No.600347
Book TitleKarm Prakruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Chirantanacharya, Malaygirisuri, Yashovijay Gani
PublisherJin Gun Aradhak Trust
Publication Year2016
Total Pages1490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size37 MB
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