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कर्मप्रकृतिः
निवेदन
॥१॥
साधनना अभावे नक्की जणायुं नथी, जैनसाहित्यमां चूर्णि साहित्यना पिता पूज्यश्री जिनदासमहत्तर गणाय छे, आ चूणि पण तेओश्रीनी ज बनावेली होय तो ना कही शकाय नहि. सातहजार श्लोक प्रमाण आ चूर्णि प्राकृतभाषामां रचेली छे. कर्म जेवा अतीन्द्रिय विषयमां समर्थ टीकाकारोने पण आ चूर्णिए ज मार्ग देखाइयो छे, चूर्णिकार महाराजनो समय अन्नात छतां सूरिपुरंदर श्रीहरिभद्ररिथी प्राचीन होय तेम विद्वानोनुं मानवु छे. श्री कर्मप्रकृतिनी टीका __ श्री कर्मप्रकृतिनी संस्कृत टीका प्रथम करवानुं मान पूज्य आचार्यदेवश्री मलयगिरिमहाराजने फाळे जाय छे, आगमोनी सुंदर सरल | भने स्पष्टतर टीकाओ करवा माटे एक समर्थ टीकाकार तरीके श्री मलयगिरिमहाराजनी ख्याति यावच्चन्द्रदिवाकरौ छे, आ टीकार्नु | श्लोक प्रमाण आठ हजारनुं छे. आ टीका साथे कर्मप्रकृति अगाउ शेठ देवचंद लालभाई फंड तरफथी छपाइ हती, परंतु हाल ते | मळती नथी, आथी चूर्णिनी नीचे आ टीका पण प्रस्तुत पुस्तकमां प्रगट करेली छे. टीकाकार महाराज देवीशक्तिवाळा हता अने) |विद्या सिद्धि माटे गिरनार गमनमां कलीकाल सर्वक्ष श्री हेमचन्द्रसूरिमहाराजना सहवर्ति हता, एम श्री कुमारपाल प्रबंधना कर्ताए |करेला उल्लेख उपरथी मालुम पडे छे.. | श्री कर्मप्रकृतिनी टीका २
ROCEEDS
चूणिने अने श्री मलयगिरि टीकाने अनुसरीने आ गहनशास्त्र उपर बीजी अने छेल्ली संस्कृतटीका करनारा नव्य न्यायमांये पारं सागत थनारा परम साहित्य पुरुष परमसंवेगी प्रखरत्यागी उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी गणिवर छे. पर्नु श्लोक प्रमाण प्रायः १३००० ||
छे. तेओश्रीनो समय सत्तरमी शताब्दीने शोभावतो हतो. आटीका साथेनी कम्मपयडी पण श्री जैनधर्म प्रसारक सभा तरफथी