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उत्तराध्ययन
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मध्ययनम्.
(३२) गा ५६.६१
CARRAEASALAM
मूलम्-तण्हाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, गंधे अतित्तस्स परिग्गहे अ। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा,
तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ५६ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ अ, पओगकाले अ दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, गंधे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ५७॥ गंधा-| णुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ५८॥ एमेव गंधम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पद्दचित्तो अ चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५९ ॥ गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झेवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणी
पलासं ॥६०॥३॥ मूलम्-जीहाए रसं गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुण्णमाहु । तं दोसहेउं अमणुण्णमाहु, समो
अजो तेसु स वीअरागो ॥ ६१ ॥ रसस्स जिब्भं गहणं वयंति, जिब्भाए रसं गहणं वयंति।
OSAASAASAASAROS
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