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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे ॥१॥ प्रस्तावना ॥१॥ -प्रस्तावना - प्रस्तुत उत्तराध्ययन सूत्र प्राचीन जैन आगमों में से एक है । इसकी अंतिम गाथा के अनुसार भगवान महावीर स्वामी ने इन ३६ अध्ययनों वाले-उत्तराध्ययन सूत्र को प्रकट करने के अनन्तर निर्वाण पद को प्राप्त किया इइ पाउकरे बुद्ध, नायए परि-निव्वुए । छतीसं उत्तरझाए, भवसिद्धिय संमए ॥ (गा० २६६) कल्पसूत्रमें भगवान महावीर के निर्वाणप्रसङ्गका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भगवान महावीरस्वामी ७२ वर्ष की आयु को | पूर्ण कर पावापुरी के हस्तिपाल राजा की राजसभा में षष्ठभक्त तप करके प्रातःकाल के समय पयासनमें बैठे हुए कल्याणफलके देने वाले ५५ और पापफलके देने वाले ५५ अध्ययनों तथा ३६ अपृष्ट व्याकरणों-उत्तराध्ययन रूप ३६ अध्ययनों का कथन करके प्रधान नाम || के अध्ययन का चिंतन करते हुए निर्वाणपदको प्राप्त हो गये। । इन दोनों उल्लेखों से स्पष्ट है कि उत्तराध्ययन सूत्र भगवान महावीर की अंतिम वाणी है इसलिए इस सूत्र का महत्व सर्वाधिक ना है। इस वाणी में आत्मोद्धार की पूर्ण क्षमता है। _इस सत्र के नाम पर विचार करते हैं तो इसमें उत्तर और अध्ययन दो शब्द सम्मिलित पाते हैं। इनमें से 'उत्तर' शब्द के दो | अर्थ हैं, और दोनों ही इस सूत्र के लिए पूर्णतः सार्थक हैं। प्रथम अर्थ है श्रेष्ट, प्रशस्त, प्रधान, और दूसरा अर्थ है पश्चाद्-भावी अर्थात् अन्त का पीछे का। इनमें से दसरा अर्थ तो उपरोक्त उत्तराध्ययन की अंतिम गाथा और कल्पसूत्र के उल्लेख से स्पष्ट है ही कि भगवान महावीर ने इसे अंतिम समय में कहा था अर्थात उनके दिया हुआ सबसे पीछे का उपदेश इसमें है। और प्रथम अर्थ भी
SR No.600344
Book TitleUttaradhyayanani Part 03 And 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay Gani, Harshvijay
PublisherVinay Bhakti Sundar Charan Granthmala
Publication Year1959
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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