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________________ कल्पसूत्र सुबोधि ॥२६५॥ एते च श्रीवज्रस्वामिभ्यः शिष्यप्रशिष्यादिगणनया नवमस्थानभाविनो नाम्ना चाऽऽर्यरक्षा इत्येवमनत् ॥ १४ ॥ रसणं अज्जवुड्डस्स गोयमसगोत्तस्स अजसंघपालिए थेरे अंतेवासी गोयमसगोत्ते ॥ १५ ॥ थेरस्स णं अज्जसंघपालियस्स गोयमसगोत्तस्स अजहत्थी थेरे अंतेवासी कासवगत्ते ॥ १६ ॥ थेरस्स णं अज्जहत्थिस्स कासवगुत्तस्स अजधम्मे थेरे अंतेवासी सुवयगोत्ते ॥१७॥ थेरस्स णं अजधम्मस्स सुव्वयगोत्तस्स अजसीहे थेरे अंतेवासी कासवगुत्ते ॥१८॥ थेरस्स णं अजसीहस्स कासवगुत्तस्स अजधम्मे थेरे अंतेवासी कासवगत्ते ॥१९॥ थेरस्सणं अजधम्मस्स कासवगुत्तस्स अज्जसंडिले थेरे अंतेवासी ॥ २० ॥ योः आर्यरक्षितार्यरक्षयोः स्फुटं भेदं विस्मृत्य आर्यरक्षस्थाने आर्यरक्षितव्यतिकरं लिखितवान् !] अष्टमः क्षणः ॥ ८ ॥ ॥२६५॥
SR No.600342
Book TitleKalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay Gani
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1915
Total Pages622
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size39 MB
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