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________________ & गवित्त त्ति ॥ ' नायकुलसि त्ति ' स्वजनगृह ॥ ६६ ॥ M तए णं जेट्टपुत्ते आणन्दस्स समणोवासगस्स तह ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ ॥ ६७ ॥ तए णं है से आणन्दे समणोवासए तस्सेव मित्त जाव पुरओ जेट्ठपुत्तं कुडुम्बे ठवेइ, २त्ता एवं वयासी। मा णं । | देवाणुप्पिया! तुम्भे अजप्पभिई केइ मम बहूसु कजेसु जाव पुच्छउ वा, पडिपुच्छउ वा, ममं अट्ठाए । असणं वा ४ उवक्खडेउ उवकरेउ वा ॥ ६८॥ ‘उवरखडेउ त्ति' उपस्करोतु-राध्यतु । ' उवकरेउ त्ति' उपकरोतु-सिद्धं सद् द्रव्यान्तरैः कृतोपकारमाहितगुणान्तरं विदधातु ॥६८॥ | तए णं से आणन्दे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्तनाइं आपुच्छइ, रत्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, रत्ता वाणियगामं नयरं मज्झं मज्झेणं निग्गच्छइ, २त्ता जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे, जेणेव नायकुले, जेणेव | पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, २त्ता पोसहसालं पमज्जइ, २त्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, २त्ता दब्भ संथारयं संथरइ, दब्भसंथारयं दुरुहइ, २त्ता पोसहसालाए पोसहिए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उवसम्पजित्ता णं विहरइ॥ ६९ ॥ तएणं से आणंदे समणोवासए उवा %ECRECASS -% A * 5 * * -4G *
SR No.600341
Book TitleUpasakdasha Shrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size13 MB
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