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________________ उत्तराध्ययन ॥३७॥ पत्रिंशमध्ययनम्. गा २२-२६ व्याख्या-संस्थानानि आकारास्तैः परिणताः संस्थानपरिणताः परिमण्डलं मध्यशुषिरं वृत्तं बलयवत् , वृत्तं मध्ये | पूरणं झल्लरीवत् , त्र्यस्रं त्रिकोणं शृङ्गाटकवत् , चतुरस्रं चतुष्कोणं वर्यपट्टादिवत् , आयतं दीर्घ दण्डादिवत् ॥ २१॥ अथैषामेवान्योन्यं संवेधमाह| मूलम्-वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ २२ ___ व्याख्या-वर्णतो यः स्कन्धादिर्भवेत्कृष्णो भाज्यः 'से उत्ति' स पुनर्गन्धतः सुरभिर्दुर्गन्धो वा स्यान्न तु नियत गन्ध एवेति भावः । एवं रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः, संस्थानतोऽपि च । अन्यतररसादियोगादिति तत्त्वम् ॥२२॥ | मूलम्-वण्णओ जे भवे नीले, भइए से उ गंधओ । रसओ फासो चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ २३ ॥ वण्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २४ ॥ वण्णओ पीअए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ २५॥ वण्णओ सुकिले जे उ, भइए से उ गंधओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ॥ २६ ॥ गंधओ जे भवे सुब्भी, भइए से उ UTR-3
SR No.600340
Book TitleUttaradhyayanam Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherAnekant Prakashan Jain Religious Trust
Publication Year2010
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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