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________________ अध्य. १६ उत्तराध्ययनसूत्रम् ॥ २२० ॥ मूलम् - नो सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ से निग्गंथे, तं कहमितिचे ? आयरिआह - निग्गंथस्स खलु सहरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेअंवा लभेज्जा, उम्मादं वा पाउणिज्जा, दीहकालिअंवा रोगायंकं हविज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसिज्जा, | तम्हा खलु नो निग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ से निग्गंथे, दसमे बंभचेरसमाहिट्ठाणे हवइ ॥१३॥ __व्याख्या - नो नैव शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानभिष्वङ्गहेतूननुपतति अनुयातीत्येवंशीलः शब्दरूपरसगन्धस्पर्शानुपाति भवति यः स निर्ग्रन्थः, तत्कथमितिचेदित्यादि प्राग्वत्, दशमं ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानं भवतीति निगमनमिति सूत्रार्थः॥ १० ॥१३॥ मूलम् - भवंति इत्थ सिलोगा तंजहा --- व्याख्या - भवन्ति विद्यन्ते अत्र पूर्वोक्तार्थे श्लोकाः पद्यरूपास्तद्यथा -- मूलम् - जं विवित्तमणाइण्णं, रहिअं थीजणेण य । बंभचेरस्स रक्खट्ठा, आलयं तु निसेवए ॥ १ ॥ व्याख्या - 'जंति' प्राकृतत्वात् यो विविक्तो रहस्यभूतस्तत्रैव वास्तव्यस्त्र्याद्यभावादनाकीर्णस्तत्तत्प्रयोजनागतस्त्र्या UTR-2 ॥२२०॥
SR No.600339
Book TitleUttaradhyayanam Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherAnekant Prakashan Jain Religious Trust
Publication Year2010
Total Pages386
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size27 MB
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