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________________ z卐८ भूमिका ॥ श्रीनवतत्त्व सुमङ्गलाटीकाया >卐 तथा स्वतंत्रताना नामे स्वच्छन्दतानी वृद्धिपामवानो जे आक्षेप मुकवामां आवे छे ते आक्षेपने दूर करवा माटे व्या० शिक्षण साथे धर्मश्रद्धा तेमज धर्माचरणना मौल कारणभूत धार्मिकशिक्षणनो अमुक अंशे सहयोग थवानी खास जरुरीयात छे । जे शिक्षण प्रायः ऐहिकसुखनु साधन छे ते शिक्षणतरफ विद्यार्थिओनो तेमज तेओना वालीओनो सम्पूर्ण ख्याल होवा साथे ते शिक्षण माटे तन मन अने धननो व्यय पण करवामां पाछी पानी थती नथी, ज्यारे ऐहिक तेमज आमुष्मिक सुखना साधनभूत धार्मिकतत्त्वज्ञान प्रत्ये केवल निरपेक्षदशा निहालवामां आवे छे. व्या० शिक्षणनी अपेक्षा अमुक अंशे पण ए धार्मिकतत्त्वज्ञान तरफ लक्ष्य अपायु होत, अने तन मन तेमज धननो सदुपयोग थवा साथे ते मार्गने उत्तेजन अपायुं होत तो आजनी प्रजा तत्त्वज्ञानथी वंचित रहेवा न पामत । प्रतिदिन हास पामती तत्त्वविद्यानी प्रगतिमाटे आजनी बाळ तेमज युवान प्रजामा धर्मतत्त्वोनी अभिरुचि विशेष थवा साथे प्रत्येक आत्मा तत्त्वज्ञाननो अंशे अंशे अधिकारी थाय ते माटे विद्यार्थिओए तेमज तेमना वालीओए खास अपेक्षा राखवानी जरुर छे, लाखो तेमज हजारोना खर्चे चालती धार्मिक अने सामाजिकसंस्थाना कार्यवाहकोए तथा धार्मिक शिक्षकोए शिक्षणनी प्रणालिकामा धर्मनी जड रहे तेम पलटो करवानी आवश्यकता छे अने श्रीमन्तोए रात्रिदिवस अर्थकामनी प्रवृत्तिमाथी पण धर्मसाधनमाटे अवसर काढी धर्मतत्त्वो जाणवा साथे तत्त्वज्ञाननी प्राप्तिना पंथे दानप्रवाह खुल्लो करवानुं कर्त्तव्य अवश्य ध्यानना राखवा लायक छे । ए प्रमाणे थशे तोज श्रमणभगवान् महावीरपरमात्माए सिद्धान्तोमां आपेला ' अभिगयजीवाजीवा' इत्यादि श्रावकोना विशेषणो यत्किंचित् सान्वर्थ थइ शकशे । श्री जैनशासनमा नवतत्त्वोनुं प्रतिपादन करनारा अनेक आगमो तेमज सुविहितगीतार्थ पूर्वाचार्यविरचित संख्याबंध ग्रंथो joy卐<卐Z095 -卐 >卐 -卐 <3 1>
SR No.600335
Book TitleNavtattva Prakaranam Sumangalatikaya Samalankrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year1934
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size34 MB
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