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________________ दी. दीपिका DEDODaBIBND/D/08/89/0/B/oBox बालपणा थवाने काज, तप संयम साधी जिनराज ॥ साधु अने श्रावक खप करे, बाल || कहे ते स्युं अनुसरे ॥ ६० ॥ भावार्थ:-इहां मनुष्यभवमां देवाधिदेवे कीघेला तप संयम तेने साधी देवलोकने विषे देवपणे उत्पन्न थया जे देव, ते शं बाल थवाने वास्ते जिनराजना कहेला संयम साध्या ? अने तप संयमना प्रभावयी ते बाल यया ? कारणके तमारूं कहेQ एम छे जे देव थाय ते बाल, एम कहेदूं तमारे व्याजबी नथी. - कारण के जिनेश्वर भगवानना साधु अने श्रावक जे तपादि करे छे ते शुं बाल थवाने वास्ते तपादिनो खप करे। छे ? कदी नहीं. एम कहेवु तदन विरुद्धज छे... कारण के देवताओ जिनेश्वरने पण १०८ स्तुतिपूर्वक मीठी वाणीए करीने कहेछे के, हे जगन्नाथ ! आप जीवोना हित वास्ते तीर्थ प्रवर्तावो, अने वली देवताओ साधु तथा श्रावकने धर्ममां पण थिर करे छे, देवे थिर करेला ते धर्मनेविषे थिर थाय छे. तेवा देवोने शुं समजीने बाल कहेता इशे, अथवा तेवा बाल देवोए कधेिल मार्गमा साधु अने श्रावक के प्रवर्तता हशे ? माटे सर्व देवो बाल नथी, एमां पण तारतम्य छे... __ आवस्यक सुर थासातना, टालि श्रवरण वदे तेहना ॥ करे जे पुस्तक वेंगण' जिस्युं, कहो || तेहने कहिये किस्युं ॥ ६१॥ venaaaavamevasanaposaavanevanmaava ३०॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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