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. अर्थ:-त्रण थानके देवता पश्चात्ताप करे ते कहे छे. अहो इति खेदे माहरे शरीर संबंधी बल छते, जीवाश्रित वीर्यछते, पुरुषाकार अभिमान तेथी उपनो जे पराक्रम ते छते, क्षेम उपद्रवरहितपणे सुकाल छतें, आचार्य, उपाध्याय भणावनारनी सामग्रीछते, शरीर नीरोगछते, हुं मनुष्यनां भवमा घणुं श्रुत भण्यो नहीं एम पश्चाताप करे. अहो में इहलोक विषयादिकनें प्रतिबंधे अतृप्तपणे परलोकथी पराङमुख उपरांठे थके विषयतृष्णायें करी घणे काल लगि चारित्रनो पर्याय न पाल्यो, मोडी दीक्षा लीधी. अहो बली में रिखिने, रसनें, सातनें गारवें करी भोगनी आशामा गृधपणे शुद्ध चारित्र फरस्युं नहीं, ए तीन थानके पशाताप करें. आवी रीते भावना भाववावाला देवने मिथ्यात्वी साथे सरखा केम करी शकाय ? नज करी शकाय. ____ एवा सुर किम कहीये बाल, जिनवर आणतणा प्रतिपाल ॥ सुरगति लान मनुजने कह्यो, | उत्तर ज्यण सत्तम सद्दह्यो । एए॥
उपरनी गाथाओमा कहेली भावनाने भावनारा, एवा देवोने केम बाल कहेवाय! जे देवो श्री जिनेवरदेवनी आज्ञाने पालण करे छे, ते कदी बाल कहेवाय नहीं. अने वळी श्री उत्तराध्ययनना सातमा अध्ययनमा सुरनी गतिनो लाम मनुष्यने कसो छ, अने आचार्य भगवान् कहे छे के अमे पण तेमज सहीए छीए.
तथाचतत्पाठः-धीरस्सपस्सधीरत्त, सम्बधम्माणुवात्तिणो चिच्चाअधम्म धम्मिठे, देवेसु उवाज्जइ ॥ २९ ॥
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