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________________ Baraaaaaaaaaaaaaaaaa/INDEPUBA आवश्यक एटले श्रमण सूत्र तेमा "देवाणं आसायणाए" ए पाठ भणी मिच्छामिदुःकडं दे छे ने अवर्णवाद | बोलता जाय छे, तेथी तेश्रो पुराणीना बेंगणनो न्याय (पोथीमांना रौंगणा जेवो) करे छे तेहने | कही शकीए. हे जिनराज। जीवानिगमे नाम उवंग, जो खेज्यो मनने रंग ॥ अणुश्र तुल्झ गुरुआ गुरु कह्या, गिरथा | | गुरुने वचने लह्या ॥ ६ ॥ बंनचेर तप संयम जिस्या, पोते जेहने ते ने तिस्या ॥ रिद्वि गणो | | तेहने अनुसार, सुरवर सुगुण ते एम विचार ॥ ६३ ॥ श्री ठाणंगसूत्रनो उपांग “जीवाभिगमसूत्र " ने विषे कह्यु छ के, देव त्रण प्रकारना छे. सम्यदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि, तेमा जेणे पूर्वभवमा तप, ब्रह्मचर्य, संयम, अणु" अल्प " तुल्य " मध्यम" गुरु " मोटा "जेवा जेवा कर्या छे, तेवा तेवा स्वामीपणाने पामेला छे, आनो विशेष खुलासो उक्त मूत्रमाथी जागी लेवो. अने ऋद्धि पण पूर्वकृत तप ब्रह्मचर्य संयमने अनुसार तेवी तेवी पामेला छे. इहां विचारवानुं छे ने सम्यक्दृष्टिदेव छे ते उत्तम अने सारा गुणवाला छ तेओने मिथ्यादृष्टिनी साये सरखा न करवा. गणांगे त्रएणे व्यवसाय, सुरवर जश् सन्ना व्यवसाय ॥ तिहां ग्रहे धम्मिय व्यवसाय, बीजे त्रीय उवंग कहाय ॥ ६ ॥ Nee derde seer word
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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