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चवीने, (भुजो के०) वली मनुष्यभव पामें. तो (एलमृयत्ताए के.) बहेरा, मुंगा, आंधला, जन्मान्ध, (प. ) एवा थाय. ए रीतें चातुर्गतिक संसारमाहे परिभ्रमण करे. ए कारणे ए स्थानक अनार्य एटले महापुरुषने अनाचरणीय छ, एने विषे केवलज्ञान नथी. यावत् सर्व दुःखना क्षयर्नु कारक ए स्थानक नथी. ए मार्ग एकान्त मिथ्यात्वनुं स्थानक, माटे ए असाधुनो पंथ जाणवो.आवी रीते त्रीजा मिश्रपक्षनो विचार कह्यो. ॥ ६॥
तापसादि मिथ्यादृष्टिी तप, जप, आतापनादि क्रिया करवाथी तेमनो मिश्रपक्ष भगवाने कहेलो छे. तेनो मिश्रपक्ष विराधक होवाथी प्रभुए आ पक्षने अधर्म पक्षमांहि गणेलो छे. ॥ २२ ॥ ___समकित सहित बार व्रतधार, देशविरतिनो एह श्राचार ॥ ते पण सूत्रे मिश्रज कह्या, धर्म पक्ष मांहे संग्रह्या ॥ १३ ॥
श्रीसूत्रकृतांगेदितीयश्रुतस्कंधद्वितीयाध्ययने आलापकः ॥ ७५-७६॥
अहावरे तच्चस्स हाणस्स मिसगस्स विभंगे एव माहिज्जइ इह खलुपाईणंवा संतेगतिया मणुस्सा भवंति तंजहा अपिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्तिकप्पेमाणा विहरति मुसीला सुव्वया सुपडियाणंदा साहू एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरता जावजीवाए एगच्चाओ अप्पडिविरया जाव जेयावण्णे तहप्पमारा सावज्जा
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