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________________ ब्राह्मणधर्म सूकी में श्रावकधर्म अंगिकार कर्यो; पण क्यां महारो ब्राह्मणनो शुचिधर्म अने क्यां ते धर्म. हुं अग्रिहोत्री ब्राह्मण यज्ञनो करनार तेने ए धर्म घटे नहीं. एवो विचार करी तेणे बागबगीचा अने कुवा तलाव कराव्या अने भिक्षुकोने दान दीधुं. वळी एकदा फरीथी विचार करी ते वानप्रस्थ थयो अने तेणे तापसी दीक्षा लीघी. ए प्रमाणे श्रावकधर्मनी करेली प्रतिज्ञा तेणे भंग करी दिशोपोख्खिया नामनी तापसी दीक्षा लीघी अने छठ छठनां पारणां करवा लाग्यो. सूर्यनी आतापना लेवानुं तथा दिशीयोनुं परिभ्रमण करवानुं शरु कर्यु. प्रथम दिवसे पूर्व दिशामां जाय अने ते दिशाना सोम महाराजाने हाथ जोडी नमस्कार करी आज्ञा मागे के मने कंद फल फूलनी रजा आपो. ए प्रमाणे आज्ञा लेई एक आंकडीथी कंद फल फूलने तोडी लावे; वळी बीजे दिवसे उत्तर दिशामां जई वैश्रमण महाराजानी एज प्रमाणे रजा मागी त्यांथी लावे, अने त्रीजे दिवसे पश्चिम दिशाना वरुणदेव महाराजानी आज्ञा मागी त्यांथी लावे; फरी चोथे दिवसे दक्षिण दिशाना यम महाराजानी आज्ञा मागी त्यांथी लावे. ए प्रमाणे कंद फल फूल लावी गंगा नदीमां जई पूजन करी आश्रममां आत्रे, अने अनि सलगावी होम करी अग्निवैश्यदेवनुं पूजन करे अने बली आपी अतिथीनुं पूजन करी तेने संतोषी पछी पोते भोजन करे. एकदा ते अनित्य भावना भाववा लाग्यो. तेणे विचार कयों के, अहो में ज्येष्ठपुत्रने घरनो भार सोंपी संसार त्याग करी प्रव्रज्या लीधी, छह छडनां पारणां करुहुँ, हुँ एकलो आव्यो ने एकलो जवानो हुँ, हुं कोईनो नथी ने मारुं
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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