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________________ Duramparamapanesamap/ERGRanasamaa पंचरात्री देवे खप करी, मिथ्या बंमी विरती आदरी ॥१५॥ इस्या देव किम कहीये बाल, सू० दी० ए अवर्णमे मोटो आळ ॥ चनविह सुर सांजलज्यो तुमे, कहेतां नितु वारुडं अमे ॥ १३ ॥ सोमील श्रावकनो अधिकार.. निरियावलि सूत्रमा (नवमा अनुत्तरोववाइ अंगना पुष्फीया नामना उपांगना त्रीजा अध्ययनमा) श्री मुधर्मस्वामी श्री जंबुस्वामी प्रत्ये कहेता हवा के पूर्वे वणारशी नगरीमा एक सोमील नामे विद्वान ब्राह्मग रेहेतो हतो तेने पांचसे शिष्यो. नो परिवार हतो. एकदा श्री पार्श्वनाथ स्वामी तेज नगरीमां समोसर्या. श्री संघ वंदन नमस्कारार्थे गयो.प्रभुए मधुरस्वरथी धर्मदेशना दीधी तेथी भव्य स्त्री पुरुषोने प्रीतबोध थयो. नगरमा ठाम ठाम प्रभुनां गुण कीर्तन गवायां ते सांभळी सोमील ब्राह्मण प्रभुनी पासे गयो, अने अनेक प्रश्नो कर्या, तेना युक्तिपूर्वक धर्मशास्त्रने अनुसरी स्यावाद शैलीथी उत्तर आपी ब्राह्मणने निरुत्तर कर्यो अने प्रतिबोध्यो. तेथी तेणे भगवाननी पासे श्रावकधर्म अंगीकार को अने बार ब्रत उचा. भगवान विहार करी अन्यत्र यया. ॥ ६ ॥ हवे पाछळथी जैन मुनीनां दर्शन नहि थवाथी मिथ्यात्वीआनी सोबत अने परिचय थवाथी जेवो संग तेवो रंग एन्यायने अनुसरी तेणे श्रावकधर्मनोपरित्याग कर्यो, अने उचरेलांबार ब्रतो उपर अरुचि थइ, एकदामध्यरात्रीए तेणे विचार कर्यो के अहो ! Vanessaeraaee0amaANDANVARum/mee
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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