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________________ खंघक० खंधक ॥१४६ setoue/0GBasanterasai/suscouplesawanp/seas नत्ते दीवस रयणे लंब नुज उन्नो समी। एक रात्रीक एम बारम अधम नत्तिए मंमिये, अनि| मेष लोचन रयणी त्रीजी काउसग्गज बंमीए॥५५॥चालती॥श्म बारह रे प्रतिमा निख्खुनी वही, | फासी पाळीरे सोधी तीरी निरवही । तिम किट्टीरे आराधी आणे करी, वळी वंदेरे स्वामी प्रदक्षणा करी ॥त्रुटक॥ करी प्रदक्षणा वीर वंदी इसो आइस मग्गए, गुणरयण संवछर करेवा नाव मुज मन जग्गए। ए तप कह्यो तुमे सोळमासी में विमासी हिव लही, तुम अनुमति करिय | तरिये वेगेनवजळनिधि सही ॥ ५६ ॥ ढाळ ॥राग-गोम॥ पहेले मासे एकेक सोलह सोलमें, मासे खंधकझषि करे ए। ए उपवास विवेक चउथ चोत्रीसम,तप दिन थाळस परिहरे ए ॥ सूरज साहमीदिहि उरध बाहूय, दिवसे | कासग्ग करि रहे ए । रयणि वीरासन मंमि अंगणवावम, दिवस निसि परिसह सहे ए॥५॥ इणिपरे तप पुरेवि वीर जिणंदह,पय वंदी म विनवे ए । हियो हरख धरेवि निरुपम पामीय, awaraemWADEMOIR/saraswatanAGE/RED/ ॥१४६॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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