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________________ . खंधक खंधक ॥१४५ Mainations. aavan/RS/ R AmoveiseDapitARIYANVAR/SGD/ ॥ ढाळ॥ चालती ॥ त्रिजुवन प्रजुनीरे वाणी तहत्ति करी आदरी, परिव्राजकरे खंधके संयम || | सिरीवरी ॥अणगारतिरे गुणमणी रयणागर हुवा, पंच समितीरे त्रिहुं गुप्ति जण संथुवा ॥त्रुटक॥ संथु त्रिजुवन गुत्तेंद्रीय गुप्त ब्रह्मचरी धरे, आण सुधी स्वामी केरी जाणी तिमश्ज खप करे ॥ लाज ागर सर्व त्यागी खंती खमतो किं बहु, निग्रंथ प्रवचन करी आगळ आदरे मारग सहु ॥५०॥ चालती॥ वीर जिनवररे कयंगल नामे जे पुरी, तिह हुँतीरे बहिया विहरण मन धरी। संपत्तारे जणवय गामागर पुरे, मुनि खंधकरे स्वामी साथे संचरे ॥ त्रुटक ॥ संचरत साथे वीरथेरा तसु समीपे अन्यसे, ग्रहण आ सेवणा शिक्षा सीखतां मन उबसे । अग्यार अंग उवंग सूत्रत अर्थथी नणी संपदा, गीयथ्य केरी लहिय मनधरी नाव उत्तम एकदा ॥५१॥ चालती॥ प्रजु वंदीरे त्रण प्रदक्षणा दे करी, श्म नाखेर संवेगी उद्यम धरी । निकु पमिमारे बारह | 18॥१४५॥ वहेवा वंद्रिये, तुम अनुमतिरे पामी निर्जर संचीये ॥त्रुटक ॥ संचिये निर्जर एम सांनळी | स्वामी आदेस दीघ, जिम थाय सुख तिम तुम करजो तिण प्रमाणति कि । श्कमास aeesosVERacetamip/hamasan
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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