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| वाणी पाणी लही ॥४१॥ ।जम कोई गृहपति घरमांद, पेसे वहते दाह अगाह ॥ काढे | वस्तु अप जे सार, घणो मूल जसु थोमो नार ॥ ४२ ॥ ए निस्तार्यो हित सुख गम,
खम निश्रेयस वळी अनुगाम ॥ पच्छा पुरा हुस्ये मुजन्नणी, इस्युं जाणी काढे धन धणी ॥४३॥ | इणपरे हुं पण करस्युं स्वाम, तनुघर आतम धनने गम ॥ ए काढ्यो परनव हितनणो, | मुजने थास्ये सहु ए घणी ॥४४॥ तिण कारण श्छा माहरी, पूरो नगवन करुणा करी ॥ स्वहस्ते दीक्षा द्यो तुमे, शिष्य करी सीखावो अमे ॥ ४५ ॥ आचार गोचर विनय विशेष, | है। चरण करण जिन धर्म अशेष ॥ तासु वचने स्वामी सहुए करे, श्रीमुखे शिक्षा प्रजु सीखवे हैं। ॥ ४६ ॥ देवानुप्रिय श्म चालवो, श्णपरे तिम उन्नो तिष्टवो ॥ इणिपरे आसन बेसवो, सुवो जमवो श्म नाखवो ॥ ७ ॥ प्राण नूत जीव सत्वहतणी, जीम जयणा हुवे अति घणी ॥ एक जीव मुहवाये नहीं, तिणीपरे किरीया करवी सही ॥ ४० ॥ ए उपदेश सहु साधुने, काळ अनंते जिन श्म कहे ॥ कहेस्ये वळी एहवो उपदेश, जिहां नहीं हींसा लवलेस ॥ ४ ॥
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