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|पाणी संथरे, प्रथम जिम अनीहरण निहरण नेद बे जिन वागरे ॥ ३२ ॥ दोहा ॥ नियमा ए| बंधक
सप्रतिचरण, सपमिकम्म कहेवाय ॥ प्राणी बिहुँ मरणे मरत, परित संसारी थाय ॥ ३३ ॥ वट्ठः | तिहायति श्ण मरण, पंचय प्रश्न ते जाण ॥ संबुद्धो खंधक तिहां, सांनळी जिनवर वाण ॥३॥ त्रण प्रदक्षणा देश करी, वंदे गुरु मतियाणी ॥ मन इच्छं बु तुम कने, केवळ नाषित वाणी ॥ ३५॥ स्वामी धर्मकथा कही, पढमोवंग प्रसिद्ध ॥ सांनळी हियमे गहगह्यो, हरखे थयो समृद्ध ॥३६॥ चोपाइ॥ उनी वंदे खंधक वळी, नगवन प्रते बोल्यो मन रळी ॥ निग्रंथनो प्रवचन सद्दहुं, थाणी प्रतीति चित्त रोचवं ॥ ३७॥ एह विशे उद्यम आदरुं, ए तइत्ति करी हियो धरुं ॥ ए साचो इह नहु संदेह, रतन रेख जाणेवी एह ॥३०॥ श्च्ब्युं पमिब्यु ए में सही, साची वाणीजे है। तुमे कह। ॥ श्म नाखी वंदी जिन वीर, ईसाने गयो साहसधीर ॥३॥ त्रिदंम कमगळु प्रमुख | ||
१४४॥ एमंत, वस्त्रादिक सहुए एकंत ॥ पालो श्रावे जिनवर पास, वंदी बोल्यो हिये विमास ॥ ४० ॥ जरा मरण जलणि परजळे, ए संसारी लोक चवचले ॥ एहमादि सकिये किम रही, उरीये
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