SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ %3D avaceaeratorenmonamastaaortesungama बोल्यो, वे त्रण वार पूछतां तेह निज मतथी मोख्यो ॥१५॥ इणे अवसरे तेह पुरीयमांही बहुजन | समवाय, जातो देखी कयंगला नगरी नरराय ॥ खंधक नीय चिस चिंतवे ए श्राव्यो महावीर, जिनमत राजा कर्मवीरवर साहसधीर ॥१५॥ जाउ तिहां करी विनय बहु पुढे प्रश्न विचार, श्म जाणी निज वस्ति श्रावी उपगरण प्रकार ॥ त्रिदंग कमंगलू कंचणीया निसिया केसरीय, बत्रा| लय अंकुस करोग पवित्रीय गणेत्रीय ॥ १६ ॥ उत्र उपानह पादुका धातु रंग्या चीर, ए चउदह | उपगरणे करी सोनीय सरीर ॥ लई चाल्यो जेटले मारगे थावेवो, प्रारंन्यो तेटले स्वामी गोयम | बोलाच्यो॥१७॥ देखसी पूरव संगतियो ते कुणं कहो स्वाम, प्रनु पत्नणे गौतम संन्नार खंधक | है || | इण नाम ॥ ते श्रावे कवण काज मिलस्ये किणकाल, गौतम पूडे एह वचन कर मेलविन्नाल ॥ २७ ॥ वळतो स्वामी पूर्वचरित्र तसु लाखे सहुआ, आसन्नो आवीयो धरलंघिय बहुश्र॥ | हिवां देखिस एम सुणी वळी गौतम बोले, चारित्र लेस्ये तुम समीप थास्ये मुनि तोले ॥१॥ हंता गोयम जेटले ए अर्थ प्रकासे, स्वामी गौतम तेटले ते अष्टिये पासे ॥ देखी गौतम हर्ष धरी doweAMEEDOMonaconvertopac//ocs/acneevan
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy