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________________ aa प्रबंधक खंधक ॥१६२01 p aataataavaastavavitrivimaavasavamavasvay तसु सन्मुख जावे, कहे श्रहो तुम मिलण एह मुज चित्त सहावे ॥ २०॥ नले श्राव्यो खंधका || | वळी वळी श्म नाखे, पींगळ पसिण स्वरूप सहु तसु आगळ दाखे ॥ चित्त चमक्यो ए एम कहे कुण तपसी नाणी, तुम मिल्यो जेह थकीय मुज वसीए ते मति जाणी॥१॥ ॥ ढाल ॥ चालती॥ नाखे गोयम मुज गुरु केवळी, वीर जिन दरसण संसयमति टळी॥ तेहने कहणे जाण्यो एटलो, खंधक तुजने वीत्यो जेटलो ॥ त्रुटक ॥ केटलो कहिये स्वामीनो गुण एक जीने में सही, कहे वळतो परिव्राजक गौतमनो आदर लही। चालो जश्ये तुम गुरुने वांदवा साथे करी, बे वेई श्राव्या वीर जिनवर पास दृष्टि सुधा नरी॥२२॥ चालती ॥ तिणे अवसरे स्वामी नितु जिमे, कर्म अघातीय खपिये नहु कीमे॥णपरे पेखे तिण तनु सिरिजयों, सक्षण व्यंजन गुणहि अलंकर्यो ॥ त्रुटक ॥ अलंकों देखी चित्त हरखी देई प्रदक्षणा वंदए, | परिणाम सूधे नाव लावत ऽरित कंद निकंदए । तिणे काळे वीर खंधक प्रति प्रश्नति वागरें, पिंगळे पूज्या पूब्वा ते श्राव्यो इहां श्म उचरें ॥३॥ चालती ॥ रिजु ते जाणी नगवन वागरे, Vartavatus/ENDMMovie/D0sonapatINTVANVARTAIN ॥१४२
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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