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________________ खंधक० हाखंधक० ॥१४१३ RATARIAGWomaNARORAGEastDAANEntsMeenawesparatiy यजुसाम अथर्वण च्यार; पंचम वेद इतिहास विचार ॥७॥ बहो जाणेवो निग्घंट, तेहतणे जाणवे || निघंट ॥ वेद चिहंना जेब अंग, वळी रहस्य ने अंग जवंग ॥ ॥ सारे वारे धारे सही, पारग | काई ऊणो नहीं ॥ बंद निरुत्त जोईस संखाण, शिदा कल्प व्याकरण पुराण ॥ए ॥ शष्टितंत्रनो जाणे नेद, नणवे मणवे सदा अखेद ॥ वळीय अनेरा ब्राह्मण तणा, शास्त्र विदीता डे जग घणा ॥१०॥ ते सघळानो कहीये जाण, कळा बहुत्तर तणो निधान ॥ सोचादिक निज धर्म पन्नवे, | अवसर जाणी सन्ना साचवे ॥११॥ तिण गमे पिंगलक निग्रंथ, जैनतणा जाणे बहु ग्रंथ ॥ | एकदा श्राव्यो खंधक पास, पूजे प्रश्न हियमले विमास ॥१५॥ ___॥ढाळ ॥ वीर जिनेश्वर चरणकमल कमळा कयवासो.॥एराग॥श्रावि तीहां आक्षेप सहित पोंगल श्म नाखे, श्री जिनसासनतणो नाव निरतो मन राखे ॥ लोक जोवने सिद्धि सिद्ध ए | संत अनंत, ए चिहुंनो कही लहिय मर्म मिरतो व्रतंत ॥ १३ ॥ केणे मरतो मरणे जीव वाधे हु हीणो, पूज्या पंचे प्रश्न एह तब ते थयो दीणो ॥ संकित कंखित कलुस सहित सुणी रह्यो श्र vawaaaaaaaaaaaaawene/BGe/totaupcom/aa ॥१४॥
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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