________________
vasae/asses/swastaweevanmaan
॥ अथश्रीखंधकमुनिचरित्रशतकम् ॥ प्रनाति-राग ॥ श्रादि जिन रिषन्न श्रीवीर चोवीसमो, नाविनोन्नविय जगदीश चउ जुश्र | नमो ॥ हुं पण पणमिय नणीसु खंदगचरी, गुरु मुखे सांनळ्यो सुणो आदर करी॥१॥ नाखियो नगवर अंग सतत बीजए, पढम उद्देस गुण गहण तसु कीजए। साधु गुण गावंतां दूरिय दूरे टळे, | साधु गुण गावतां चित्त वंबित फळे ॥२॥ दुखनी अर्गला पूरिय कयंगला, दीस ए उब्वे करिय
बहु मंगला ॥ तत्थ ईसान कूर्णमि गुण सुंदरे, उत्त पलासए चेश्ये मणहरे ॥३॥ वृक्ष अशोक | | तळे पुढवी सिलवट्टयं, कसिण घण मसिण किर जाण कसवयं ।। तासु श्राकार सिंहासणं सोहए, | विविध रूपे करी जण मणं मोहए ॥ ४॥ त्रिजुवन तारक वीर समोसर्या, तिहां प्रजु वंदवा बहु | जण नीसर्या ॥ श्रावतां दुख संसारना वीसर्या, खामिपय सेवतां काज सहुए सर्या ॥५॥ ढाळ ॥ |॥ चोपा ॥ तिहाथकी नासन्न न दूर, सावत्थी नगरी गुणनूर ॥ गर्धनाल तापसनो शीष, | | गुरुपय सेव करे निसदीस ॥ ६ ॥ खंधक परिव्राजक इणे नाम, घणुं ते निवसे तेणे गम ॥ रियु
WarmavareaawvaadivatayaSaiyaasetonantsGo/sat/Anavana
evaarimavas