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________________ yamanup/eemaa/moonawanapanasanvaamawesRAJA - चुरी अरहटियो घर, उसळ मूशळ निसाह, लोढण पिंजण सूपको, सावरणी व्यवसाद ॥ एह तणो श्रारंन करंता, उठे मनमां उछाह ॥सीख॥५॥ जेह नोजन करतीय, पूरे गर्न जे नारी, | बेनी उठे उगी करी, बेसे जेअविचारी, धावत बाळ मेली रोवंतो, दीये अहार तिवारी ॥सीख०॥६॥ ब्येकाय संघट्टति, साधु देखी उमेश, अग्रपिंग उपर थको, लेश पास ग्वे॥ एह दातार जे टाळ नहीं, दायक दोष हवे॥सीख ॥७॥ मेली युक्त अयुक्त बे,आपे जे अणालोग अल्प जाणी उत्सुकपणे, अथवा नाव वियोग ।। श्म लेतां जन्मिश्रित लागे, बिहुतणे संयोग॥सीख०॥॥ अव्यथकी वर्णादिके, अपरिणम्यो जे जाण, बिहुँ जणमांदे एकने, देवाने परिणाम ॥ व्यन्नाव बिहुं नेदे टालो, अपरिणत दोष पिडाण ॥सीख०॥ए ॥ दहीं बाश नोजन रसे, नाजन कर खरमाय, पछाकर्म विशेष गणी, प्राय ते न लेवाय ॥ इणिपरे मुग्धपणे ले तेने, लिप्त दोष कहेवाय ॥ सीख० ॥ ७० ॥ अन्न सीथ रस बिंषु, जे देतां धरणी पमंत, बर्दित दोष ते परिदरो ।। बहुळ जीव निवर्मत, खीर खांम घृत बहु पमियो, जोवो तासु दिवंत ॥ सीख ॥१॥ ADHUNE vasaeuticetamaRGDemaratee948/
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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