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________________ एषणा ॥१३॥ maavatsewdbawwaravasveesawantwasabardasawwwes विरस तेण विणु, जिम विणु लवण रसोश ।। सीख० ॥६॥ दायक देतो देखी करी, जेहनी आणे || एषणा संक, ते तेणे दोषे दुःखीये, ए जिन वचन निसंक ॥ लोलपणे व्ये लोनी जाणीक, लूट। ति लहि | लंक ॥ सीखः ॥ ६ए ॥ म्रदित बिंदु नेदे नण्यो, खरमयो सचित्त अचित्त ॥ वनस्पति पाणी | पृथवी, तेह जाण्यो सचित्त ॥ अव सुक्क जन प्रवचन दूषित, म गणे तस गुण अचित्त ॥ सीख० | ॥ ७० ॥ पाणी माटी अगनि वन, त्रस थिति थाप्यो जेय ॥ एक अणंतर निदेप्यो, अवर परंपर || | जेय ॥ ए निक्षिप्त अचित्त , जो पण तो पुण परिहरे तेय ॥ सीख० ॥१॥ जेह सचित्ते ढांकीयो, अने अचित्त होय ॥ पीहित दोषनी श्णी परे, श्रुत चउनंगी जोय ॥ त्रण नांगा तिह मुनि परिहरिया. चोथे दोष न कोय ॥ सीख० ॥७॥ जिण नाजन देवा तणे, वस्तु अयोग्य विचारी, साधु काज देवा नणी, ते अनेथी उसारी ॥ तिणेज ये अशनादिक दायक, साहरिय दोष तिवार ॥ सीख० ॥ ३ ॥ अप्रजु पंमक शिशु थविर, अंध मत्त उमत्त करी ॥ तापित तनु कंपतो, निगमबद्ध इमि जुत्त ॥ गलित बिन्नकर चरण पाउमी, ए दातार बजुत्त ॥ सीख० ॥ ४ ॥ C/149199/INDN0/0G/RBEDARDAS/ -- / /
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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