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________________ एषणा० ॥१३९॥ RUBBED/ITROIDDRBanassaeospnasainaramaVANDAR चौपाश्न। ढाळ ॥ मुहतो धर्मघोष इण नामे, लेश् वा मनन परिणामे ॥ गुरु आदेशे || || एषणा करे विहार, पाळे संयम निरतीचार ॥ ७ ॥ उग्र तपे तनु शामे सदा, नयरी वारत्तें गयो एकदा ॥ राजा मंत्री तिहां ले वारत्त, उत्तम गुणगण करी पत्त ॥ ३ ॥ तस घर पहोत्यो नोजन काल, नारी हर्ष थयो नयण निहाळ ॥ नोजन श्राएयो देवा नणी, खोर खांम घृत नक्ति घणी ॥ ४॥ पमतो देख। तिहां रसबिंड, अनेषणी यति गणीय मुर्णिदु ॥ परिसामित दोषे खळनळ्यो, विणु लीधे ते पागे वढ्यो ॥ ५॥ बेठे गोखे देखी वारत्त, चिंते कां न लीधो | नत्त ॥ मुज घर मुनिवर जाणुं नहीं, का कारण एह ने सह। ॥ ६ ॥ण अवसर तिहां जोवो वळी, तेणे बिंड बहु मांखी मळी ॥ घरकोयल आवि तिण केम, जाणे कर्म ते आणी तेम ॥७॥ काकीमो धाव्यो उबळी, जीव जीवने पामे बळी ॥ मठ गिलागिल इण संसार, ते देखी धावी || ||॥१३९।। | मंजार ॥ ७॥ तिहां श्वान श्राव्यो पाहणो, सहवासी मन मच्छर घणो ॥ जाति जातिना ||| वैरी केव, श्म वढवा लाग्या ते बेव ॥ नए ॥ बिहुँ दिसि आव्या बिहुँना धणी, कलह करे ते | WiteVIRMIRVAID/mayaPAGE/netsaATE Baa/
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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