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________________ एषणा ॥१३४ aaaaonoups/us/ a दायक ग्राहक जो मळे, तो लाने नवपार ॥॥ सोल दोष दायक थकी, साधुथकी पण सोल॥ दस मिश्रित साचा लही, टाळो मननी नोळ ॥ ए॥ चोपा ॥ वंदिय वीर जिणेसरराय, पामी गुरुया सगुरु पसाय॥ विवरण दोष बेंतालीस तणं, लान्न काज श्रत जोइन्न॥१॥यागममां घणो विस्तार, तेहनो में किम लहिये पार ॥ संदेपे कहीस्युं तेदवा, गुरुमुखे जाएया जे जेहवा ||| | ॥ १९॥ उद्गम उत्पादन एषणा, सोल सोल दस क्रम लेखणा ॥ सर्व मत्री थया बेंतालीस, || | | परिहरवा मुनि करे जगीश ॥ १२॥ धर्मति पय बे पमह प्रघोष, श्राधाकर्म उद्देसिक दोष ॥ पुंतिमिश्र उवणा पाहुमी, एवं बह उर्गति पाउमी ॥१३॥ प्रादुःकरण दोष सातमा, क्रीत जाणी बागम बाग्मो ॥ नवमो ऽषण प्रामित्य नाम, परिवर्तित नण दसमे गम ॥१४॥ अनिहम || थगियारमो विचार, बारसमो उन्निन्न निवार ॥ मालोहम तेरसमो जाण, चउदसमा आबिद्य वखाण ॥१५॥ अनिसृष्ट कहिये पनरमो, अध्यवपूरक ने सोलमो, ॥ नाम थकी ए सोलह ॥१३४॥ | नण्या, गुरुमुखे आगम वचने सुण्या ॥ १६ ॥ हिवे संक्षेपयको विवरिये, प्रगट नाव जिम saeasusampusparendeavousanusance/s/staseva p पाहा aanasode
SR No.600329
Book TitleSurdipikadi Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharyadi, Mangaldas Lalubhai
PublisherMangaldas Lalubhai
Publication Year1913
Total Pages412
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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